मनमानी. अधिकतर निजी विद्यालयों में नहीं हो रहा मानक का पालन

पाठशाला भेज रहे हैं या गोशाला! अभिभावक व स्कूल प्रबंधन बच्चों को यातायात पर ध्यान नहीं दे रहे. इससे बच्चों के साथ हादसे के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता. सहरसा नगर : सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश और बच्चों के परिजनों की मांग पर सीबीएसई ने अपने एफिलिएशन कानून के परिवहन नियम में बदलाव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2016 12:40 AM

पाठशाला भेज रहे हैं या गोशाला!

अभिभावक व स्कूल प्रबंधन बच्चों को यातायात पर ध्यान नहीं दे रहे. इससे बच्चों के साथ हादसे के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता.
सहरसा नगर : सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश और बच्चों के परिजनों की मांग पर सीबीएसई ने अपने एफिलिएशन कानून के परिवहन नियम में बदलाव की बात तो की है. लेकिन स्थानीय स्तर पर सरकार के नियमों की विद्यालय प्रबंधन द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही है. बच्चों को स्कूल बस के अभाव में रिक्शे पर जानवरों की तरह लाद कर स्कूल भेजना व सामने आ रहे दृश्य चर्चा के केंद्र बने हुए हैं. तकरीबन शहर के सभी मोहल्लों में दो लोगों की क्षमता वाले रिक्शे पर छह से आठ बच्चों को लाद कर खुलेआम बच्चों की जिंदगी सड़कों पर नुमाइश की जाती है.
स्थानीय स्तर पर सीबीएसइ के नाम पर संबंद्धता प्राप्त स्कूलों में भी परिवहन नियमों का पालन नहीं हो रहा है. जबकि अभिभावक इन चीजों की पड़ताल के बजाय स्कूल की इमारत को देख बच्चों के स्वर्णिम भविष्य की उम्मीद लगा लेते हैं. शहर में स्कूल बसों के अलावा ऑटो, मैजिक व सवारी रिक्शे पर बच्चों को ढ़ोने की प्रथा कम होने के बजाय बढ़ रही है. ज्ञात हो कि ग्रामीण इलाकों में भी स्कूल व उनके बसों को लेकर बनाये गये परिवहन कानून मखोल बन कर रह गये हैं.
इन नियमों का करना होगा पालन : स्कूल बस के ड्राइवर के पास कम से कम पांच साल का अनुभव और हैवी ड्राइविंग लाइसेंस होना अनिवार्य है. यदि ड्राइवर को साल में दो बार परिवहन नियम तोड़ने व अनुशासनहीनता की वजह से नोटिस मिला हो तो वह स्कूल बस नहीं चला सकता है. प्रत्येक बस का नियमित फिटनेस करना लाजिमी है. बस का कलर पीला, उस पर स्कूल का नाम व कांटेक्ट नंबर लिखा होना और बस के आगे-पीछे स्कूल बस लिखा होना चाहिए. इसके अलावा स्कूल बस की स्पीड 40 किलो मीटर प्रति घंटा से अधिक नहीं होनी चाहिए.
इमरजेंसी अलार्म भी जरूरी : सीबीएसई की ओर से जारी नए नियम में इस बात पर बल दिया गया है कि सभी स्कूल बसों में इमरजेंसी अलार्म लगा होना चाहिए. ताकि इमरजेंसी के समय मौजूद बच्चे और स्टाफ अलर्ट हो सकें. साथ ही फर्स्ट एड बॉक्स होना चाहिए. इसके अलावा स्कूल बस में बच्चों के स्कूल बैग रखने के लिए पर्याप्त जगह भी होना चाहिए.
बस की व्यवस्था कराना स्कूल की जिम्मेदारी : छात्रों के लिए स्कूल बस की व्यवस्था कराना भी प्रत्येक स्कूल की जिम्मेदारी है. स्कूल प्रशासन की यह भी जिम्मेदारी होगी कि वह अपने स्तर से यह चेक करे कि स्कूल बस के सभी दरवाजे रनिंग कंडीशन में ठीक से बंद हो जाते हैं या नहीं.
इसके अलावा ड्राइवर व कंडक्टर का समय-समय पर मेडिकल चेकअप कराना भी जरूरी होगा. साथ ही उनके लिए रिफ्रेशर कोर्स भी संचालित करने होंगे. जबकि अभिभावक बताते हैं कि कई बड़े स्कूल बच्चों को दूर से लाने में असहमति जताते हैं. जिस कारण निजी लोगों की व्यवस्था पर निर्भर रहना पड़ता है.

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