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दिन में चैन न रात को सुकून

अप्रैल महीने में प्रवेश करने के बाद पहली तारीख से अब तक प्रतिदिन पहले से ज्यादा तपिश और तीखी धूप लोगों को बैचेन कर रही है. आसमान से आग बरसती धूप शरीर को जला रही है. धरती भी आग उगल रही है. सहरसा : पिछले कुछ दिनों से लोगों को गरमी की तपिश ने हलकान […]

अप्रैल महीने में प्रवेश करने के बाद पहली तारीख से अब तक प्रतिदिन पहले से ज्यादा तपिश और तीखी धूप लोगों को बैचेन कर रही है. आसमान से आग बरसती धूप शरीर को जला रही है. धरती भी आग उगल रही है.
सहरसा : पिछले कुछ दिनों से लोगों को गरमी की तपिश ने हलकान कर दिया है. अप्रैल महीने में प्रवेश करने के बाद पहली तारीख से अब तक प्रतिदिन पहले से ज्यादा तपिश और तीखी धूप लोगों को बैचेन कर रही है. आसमान से आग बरसती धूप शरीर को जला रही है. धरती भी आग उगल रही है. हवा भी बहती है तो दोपहर बाद गरम हो जाती है. लोगों को न दिन में चैन मिल रहा है और न ही रात में. पसीने से लोग तर-बतर हो रहे हैं. हर हमेशा पसीना पोंछने व पंखा डुलाने में व्यस्त रहने लगे हैं.
बिजली के पंखे से थोड़ी-बहुत राहत मिलती है तो अब पहले की अपेक्षा बिजली थोड़ी बहुत नदारद रहने लगी है या आंख-मिचौली खेलने लगी है. कहने के लिए शहर में 20 में से 22 घंटे की बिजली आपूर्ति की जा रही है. लेकिन इनमें से आधे समय बिजली का आना-जाना लगा रहता है. शहरी क्षेत्र के कई इलाकों में लो वोल्टेज की समस्या विकराल बनने लगी है. ऐसे मुहल्लों में बिजली का होना या नहीं होने का कोई मतलब नहीं रह गया है.
बढ़ता जा रहा है पारा
कुछ दिनों पूर्व तक 25 से 32 के बीच फंसा पारा बुधवार को 40 के पास पहुंच गया था, जो अब तक वहीं अटका पड़ा है. सूरज की तपन और लोगों की बेचैनी देख ऐसा लगता है कि मौसम का पारा अब 40 के पार छलांग लगाने ही वाला है. घर की दीवारें भी अहले सुबह से ही तप जाती है, टंकी का पानी भरने के साथ खौल जाता है. बाजार निकलने के नाम पर पहले ही पसीने छूटने लगते हैं. दस बजते-बजते बाजार की सड़कों से भीड़ का खिसकना शुरू हो जाता है. अतिआवश्यक कार्य के अलावे घर से बाहर निकलना लोगों ने बंद कर दिया है. हल्के -फुल्के कपड़े व हल्का भोजन करने की आदत सी बनती जा रही है. थोड़ी-थोड़ी देर के अंतराल पर ठंडा पानी से गला तर करने की आवश्यकता होने लगी है.
हाथ पंखा बन रहा सबका सहारा
गरमी से शरीर को थोड़ा भी राहत पहुंचाने वाला सामान इन दिनों खूब बिक रहा है. सबसे अधिक बिक्री हाथ पंखे की है. प्रचंड गरमी में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी बिक्री सभी दुकानों में होने लगी है. कई तरह के रंग-बिरंगे पंखे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. हाथ पंखे भी कई तरह के हैं.
ताड़, खजूर, प्लास्टिक, फाइबर प्लास्टिक व फोल्डिंग. हाथ पंखों में सबसे अधिक डिमांड ताड़ व खजूर के पंखों की है. रेडिमेड की दुकानों में हाफ पैंट व हल्के गंजी की बिक्री धूम मचा रही है तो कोल्डड्रिंक्स की दुकान ग्राहकों से कभी खाली ही नहीं हो पा रही है. श्रृंगार प्रसाधन सहित आम किराने की दुकानों में तरह-तरह के आइस टाल्क (पाउडर) की बिक्री चरम पर है. इलेक्ट्रिक पंखे, कूलर व एसी की बिक्री भी जोरों पर है. हल्का फुल्का खाना पसंद करने वाले लोगों का झुकाव इस भीषण गरमी में दही की ओर ज्यादा बनता जा रहा है. वे बताते हैं कि दही पेट को ठंडा रखता है साथ ही हाजमा ठीक रखने के अलावे पूर्ण भोजन का भी एहसास कराता है.
गरमी में अमृत है पानी
शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ विमल कुमार कहते हैं कि गरमी की उमस में शरीर अत्यधिक पानी का डिमांड करती है. लू से बचाव के लिए लोगों को पानी का अत्यधिक सेवन कर ही घर से बाहर निकलना चाहिए. इसके अलावा एसी से सीधे धूप में निकलने से परहेज करना चाहिए. चिकित्सक बताते हैं कि गरमी के समय में मीट, मछली व अंडा का सेवन कम करना चाहिए. इसके अलावा बच्चों व बुजुर्ग को ओआरएस का घोल नियमित पीना चाहिए. उल्टी, दस्त व बुखार की स्थिति में चिकित्सक से सलाह लेकर ही दवा का सेवन करना चाहिए.
खूब बिकने लगा एस्ट्रॉल
मुस्लिम धर्म की महिलाओं व युवती के द्वारा चेहरे को ढ़ंकने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला बुरका की तरह ही काम करता है एस्ट्रॉल. एस्ट्रॉल का प्रयोग चेहरे व बाल को ढ़ंकने के लिए विभिन्न सम्प्रदाय की लड़कियां करती है. 80 से 250 रुपये के बीच बाजार में उपलब्ध एस्ट्रॉल की बिक्री काफी हो रही है. जो इन लोगों को धूप व धूल दोनों से बचाव करती है. छात्रा सुरभि कहती है कि एस्ट्रॉल से चेहरे की चमक धूप में भी बरकरार रहती है.
प्रसिद्ध फिजिशियन डॉ एच आर मिश्रा कहते हैं कि इन दिनों वायरल फीवर की चपेट में लोग आ रहे हैं. खासकर जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, वायरल उन पर ज्यादा अटैक करता है. वायरल की वजह से लोगों को बुखार सहित नाक, कान, आंख व गले में संक्रमण देखा जा रहा है.
इन वायरलों से बचाव के लिए प्रदूषित हवा सहित मच्छर भगाने वाले क्वाइल, बर्फ, अगरबत्ती, धूल व धुआं से दूर रहना चाहिए. डॉक्टर कहते हैं कि मौसम में हो रहे बदलाव की वजह से बच्चों में डायरिया की शिकायत बढ़ जाती है. इसकी मुख्य वजह शरीर में पानी का कम होना है. डायरिया होने पर बच्चों को ओआरएस का घोल पिलाना चाहिए. इसके अलावा ताजा फलों का जूस भी पिलाया जा सकता है. जवानों व बुजुर्गों में डिहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है. ओआरएस, इलेक्ट्रॉल अथवा घर में पानी, नमक व चीनी का घोल बना कर पिलाना चाहिए. बीमारी नहीं भी है तब भी गरमी के दिनों में नियमित रूप से इसका सेवन करना चाहिए.
शुरू है डिहाइड्रेशन व डायरिया का अटैक
इन दिनों कोसी के इलाके में मौसम का मिजाज चुनावी मीटर की तरह ही पल पल बदल रहा है. मौसम का रुख देखे बिना ही बच्चों से लेकर बड़े उम्र तक के लोग अनियमित जीवन जीने लगे हैं. धूप में चलकर घर पहुंचते ही पंखा, कूलर व एसी चलाये बिना रहा नहीं जाता है. लेकिन इस मौसम में लापरवाही कई बीमारियों को आमंत्रण दे रही है. बच्चों का इम्यून सिस्टम कम होने की वजह से बदलते मौसम का असर सबसे ज्यादा बच्चों व बुर्जुगों में देखा जाता है. बच्चों में सर्दी जुकाम के साथ निमोनिया के लक्षण भी सामने आ रहे हैं. नाक में एलर्जी, वायरल बुखार, गले की खराबी और स्कीन एलर्जी के रोग भी पनपने लगे हैं.
बच्चों को हमेशा पिलाते रहें पानी
बढती गर्मी ने लोगों खासकर छोटे बच्चों की परेशानी बढा दी है. तेज धूप के कारण लोग जहां लू की चपेट में आ रहे हैं, वहीं हर पल बदलता मौसम बच्चों के लिये नयी बीमारियों को आमंत्रित कर रहा है. बच्चे ही नहीं बल्कि बूढे सहित हर उम्र के लोग अलग-अलग प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. मौसम के मिजाज में आ रही गर्मी के कारण वायरस इंफेक्शन तेजी से फैल रहा है. इससे सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हो रहे हैं. शिशु रोग विशेषज्ञ डा बृजेंद्र देव कहते हैं कि इस मौसम में सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को होती है.
बच्चों को समय-समय पर पानी पिलाते रहना चाहिए. मच्छरों के बढ़ते प्रकोप व उनके काटने से मलेरिया सहित कई बीमारियों की चपेट में लोग आ रहे हैं. खास कर बच्चों को मच्छरों के प्रकोप से बचाने की जरूरत है. इसलिए मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. बच्चों को फीडर से ज्यादा ग्लास में दूध पिलाना चाहिए.
पछिया हवा ने बढ़ा दी है मुश्किल
चिलचिलाती धूप ने वातावरण में काफी गरमी भर दी है. जिसके कारण सुबह नौ-दस बजे के बाद सड़क पर पैदल चल रहे पथिकों के चेहरे पर छलक आई पसीने की बूंदें व उड़ने वाली धूल को स्पष्ट देखा जा सकता है. दोपहर बाद तो सड़कों पर सिर्फ वे ही नजर आते हैं, जिन्हें शायद बाजार में कोई जरूरी काम होता है. गर्मी का आलम यह है कि लोग फिर से बिजली के बारे में बात करने लगे हैं और आग उगलती धूप को कोसने लगे हैं. मौसम के इन दुश्वारियों के बीच भी कॉलेज गर्ल्स की चहलकदमी ने शहर के फैशन को नया लुक दिया है. पूर्व में सन रे से चेहरे की रंगत को बचाने के लिए घर में ही रहने वाली लड़कियां एस्ट्रॉल लगा घरों से निकलने लगी है.

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