स्वास्थ्य विभाग उदासीन. बेटी जन्म लेती नहीं, लिख देते हैं हत्या की पटकथा

कैसे रुके अवैध लिंग निर्धारण जांच अभी भी समाज में बेटी के जन्म को अभिशाप माना जाता है. नतीजतन, बेटी के जन्म लेने से पहले अल्ट्रासाउंड सेंटरों में अजन्मी बच्ची की हत्या की पटकथा लिख दी जाती है. इसकी शुरुआत अल्ट्रासाउंड सेंटरों में लिंग निर्धारण जांच के साथ होती है. लेकिन ऐसे अवैध जांच करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 17, 2016 6:25 AM

कैसे रुके अवैध लिंग निर्धारण जांच

अभी भी समाज में बेटी के जन्म को अभिशाप माना जाता है. नतीजतन, बेटी के जन्म लेने से पहले अल्ट्रासाउंड सेंटरों में अजन्मी बच्ची की हत्या की पटकथा लिख दी जाती है. इसकी शुरुआत अल्ट्रासाउंड सेंटरों में लिंग निर्धारण जांच के साथ होती है. लेकिन ऐसे अवैध जांच करने वाले अल्ट्रासाउंड सेंटरों की विभाग नियमित जांच नहीं करता है.
इससे यह अवैध धंधा शहर में चल रहा है.
सहरसा नगर : बिटिया है तो कल है, उसकी आवाज से घर आंगन गुलजार है. आदमजात चंद्रमा के बाद मंगल तक पहुंच चुका है, लेकिन अभी भी समाज में बेटी के जन्म को अभिशाप माना जाता है. नतीजतन, बेटी के जन्म लेने से पहले अल्ट्रासाउंड सेंटरों में अजन्मी बच्ची की हत्या की पटकथा लिख दी जाती है. शहर के अधिकांश प्रसव गृह एवं नर्सिंग होम में बेटियों की किलकारियों को गुम करने का कारोबार वर्षों से चल रहा है.
इसके कई उदाहरण भी हैं. इसके बावजूद इस पर अंकुश लगाने में विभाग या प्रशासन दिलचस्पी नहीं ले रहा है. परिणामस्वरूप लिंग अनुपात प्रभावित हो रहा है. बीते दिनों की बात करें तो शहर के सदर अस्पताल के पास एक नवजात बच्ची का शव मिला था, जिसे आवारा कुत्तों का झुंड नोच रहा था.
यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी कई नवजात बच्चियों का शव व भ्रूण शहर के विभिन्न स्थानों पर मिला है, जो इस बात की स्पष्ट गवाही देता है कि जिले में भ्रूण एवं नवजात की हत्या लंबे समय से चल रही है. माना जा रहा है कि इन हत्याओं का मुख्य केंद्र बिंदु मानक विहीन अल्ट्रासाउंड सेंटर ही होता है.
प्रसव गृह का अल्ट्रासाउंड कनेक्शन: डीबी रोड, सुपर बाजार व नया बाजार सहित ऐसे कई इलाके है, जहां वैध व अवैध प्रसव गृह संचालित हो रहे हैं. प्रसव गृह का सीधा कनेक्शन अल्ट्रासाउंड सेंटरों के संचालकों से होता है. जानकारों के अनुसार यहां गर्भपात एवं प्रसव के लिए आने वाली प्रसूता के बच्चे का लिंग निर्धारण बड़ा ही गुप्त तरीके से किया जाता है.
इसके बाद प्रसव या गर्भपात कराने की प्रक्रिया शुरू होती है. इस पूरे मामले में पीएनडीटी के सारे नियम-कायदे धरे रह जाते हैं. विभाग भी ऐसे मामलों को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है. लिहाजा अल्ट्रासाउंड सेंटर एवं प्रसव गृह के संचालक बेखौफ अपना धंधा चला रहे हैं.
गर्भस्थ बच्चों को है खतरा: यूं तो अल्ट्रासाउंड कई कारणों से आवश्यक माना जाता है, लेकिन अधिक या अप्रशिक्षित लोगों से अल्ट्रासाउंड जांच कराने से गर्भस्थ बच्चे के मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है.
इससे निकलने वाली रेडियो एक्टिव तरंगों से गर्भस्थ बच्चे के दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ता है. लगातार अल्ट्रासाउंड करवाने से डीएनए सेल्स को नुकसान पहुंचता है, और इसके साथ ही शरीर में ट्यूमर भी बनने लगते हैं, जो कि मौत के जोखिम को बढ़ा देता है. अल्ट्रासाउंड जांच आवश्यकतानुसार जाने-माने रेडियोलॉजिस्ट से ही कराना चाहिए.

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