हवा ही नहीं, कान को भी पटाखों से खतरा

सहरसा : पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ पटाखों की तेज आवाज कान के लिए भी खतरा हो सकता है. दीपावली पर पटाखों का धुआं एवं उनसे निकलने वाले रसायनों से छोटे बच्चों एवं अस्थमा रोगियों को विशेष परेशानी होती है. पटाखों की तेज आवाज (लगभग 123 डेसीबल या इससे अधिक ऊंची आवाज) लोगों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2016 12:25 AM

सहरसा : पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ पटाखों की तेज आवाज कान के लिए भी खतरा हो सकता है. दीपावली पर पटाखों का धुआं एवं उनसे निकलने वाले रसायनों से छोटे बच्चों एवं अस्थमा रोगियों को विशेष परेशानी होती है. पटाखों की तेज आवाज (लगभग 123 डेसीबल या इससे अधिक ऊंची आवाज) लोगों को बहरा बना सकता है. पर्यावरण विभाग दीपावली में पटाखों से होने वाले प्रदूषण के लिए हर बार खानापूर्ति कार्रवाई कर रुक जाता है.

लोगों के लिए एक बार सार्वजनिक सूचना जारी करने के बाद पटाखों के शोर एवं प्रदूषण को भूल जाता है. दीपावली में इस बार शहर में ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए अब तक कोई उपाय नहीं किया गया है. बाजार में बिक रहे पटाखों से निकलने वाली आवाज ने लोगों को हलकान कर दिया है. दुर्गा पूजा और उसके बाद दशहरा उत्सव में डीजे के साथ पटाखे भी फोड़े गये. पर्यावरण विशेषज्ञ के मुताबिक इनका धमाका 123 डेसीबल तक था जो लोगों को बहरा कर सकता है.

लेकिन दीपावली में इनका शोर ज्यादा हो जाता है. बाजार में बिकने वाले पटाखों का शोर गली मोहल्लों में प्रदूषण बढ़ाते है. जिसके चलते लोगों के बहरे होने और ब्लड प्रेशर ज्यादा होने की आशंका बढ़ जाती है. पटाखों के उपयोग पर नकेल कसने के लिए प्रशासन या विभाग कोई उपाय नहीं कर रहा है. पर्यावरण सरंक्षण विभाग जहां कर्मचारियों की कमी बताकर आवासीय व व्यवसायिक क्षेत्रों में ही ध्वनि प्रदूषण की जांच करने तक सीमित रह गया है. वहीं प्रशासन द्वारा भी इसके लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है.

डेढ़ गुना बढ़ता है प्रदूषण
दीपावली के समय शहर में ध्वनि प्रदूषण की मात्रा आम दिनों की तुलना में निर्धारित सीमा से करीब डेढ़ गुना तक बढ़ जाती है. पर्यावरण संरक्षण विशेषज्ञ के अनुसार जिले में पटाखा की बिक्री बढ़ गयी है. लेकिन सरकारी आदेश का पालन नहीं होने पर लोग कानफोड़ू शोर से परेशान हो रहे हैं.

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