जीविका ने लगाये पंख, तो आम से खास हो गयी श्यामली

स्वयं सहायता समूह के गठन से जिला परिषद सदन तक का तय किया सफर कहती हैं, जीविका ने बदल दी उसकी किस्मत, बोलना-पढ़ना भी यहीं सीखा सहरसा : गरीबी से जूझ रही सलखुआ प्रखंड के सितुआ गांव की श्यामली देवी को जीविका ने ऐसे पंख लगा दिये कि वह कुछेक वर्षों में ही आम से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 9, 2016 3:30 AM

स्वयं सहायता समूह के गठन से जिला परिषद सदन तक का तय किया सफर

कहती हैं, जीविका ने बदल दी उसकी किस्मत, बोलना-पढ़ना भी यहीं सीखा
सहरसा : गरीबी से जूझ रही सलखुआ प्रखंड के सितुआ गांव की श्यामली देवी को जीविका ने ऐसे पंख लगा दिये कि वह कुछेक वर्षों में ही आम से खास महिला हो गयी. जो कल तक दिन-रात पैसों की जुगाड़ करती फिरती थी. जिसे हर हमेशा चूल्हा जलाने की चिंता सताती रहती थी. वही श्यामली आज औरों को गरीबी के बंधन से मुक्ति का उपाय बता रही है. जीविका ने उसे गांव व बाहर एक आदर्श महिला के रूप में स्थापित कर दिया है. साल 2014 में पूजा जीविका महिला ग्राम संगठन सलखुआ से जुड़कर न सिर्फ अपनी गरीबी दूर की. बल्कि एक सशक्त महिला बनकर 2016 के जिला परिषद चुनाव में बड़े अंतर से विजयी हुई.
समूह से जुड़ कर बोलना सीखा: उन्होंने बताया कि जैसे-तैसे झोपड़ी में पति व बच्चों के साथ जीवन गुजार रही थी. पति घर-घर घुमकर गांव वालों का छोटा-मोटा इलाज कर जो कुछ थोड़ा लाते थे. उससे किसी तरह घर का खाना जुट पाता था. वर्ष 2014 के जुलाई माह में 15 सदस्यों को संगठित कर प्रेम जीविका महिला स्वंय सहायता समूह का गठन किया गया. जिसमें सर्वसम्मति से वह अध्यक्ष चुनी गई. मार्च 2015 में पूजा जीविका महिला ग्राम संगठन का निर्माण कर उसे समूह से जोड़ा.
वह बताती हैं कि इन संगठनों में काम करते हुए आमलोगों से लगातार जुड़ती गई. लोगों के बीच उठने-बैठने, बोलने, पढ़ने-लिखने का अवसर मिला. आगे बढ़ने के हौंसले ने उसकी जिज्ञासा भी बढ़ती गई. श्यामली कहती है कि जीविका समूह की अध्यक्षता करने के लिए उसे बोलना सीखना जरूरी था. सो उसने इसके पीछे खूब मेहनत किया और अपना पूरा फोकस अपनी बात दूसरों को समझाने का प्रयास करने पर किया.
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तो उसने सबसे पहले अपने पति गयानंद मुक्तिबोध से विचार विमर्श किया व अनुमति मिलने के बाद उन्होंने अपनी इस इच्छा को जीविका समूह की दीदियों के सामने रखा. वहां से भी हरी झंडी मिलने के बाद अब चुनाव लड़ने के लिए इन्हें पैसों की जरूरत भी थी. इसके लिए श्यामली ने समूह की बैठक में ऋण के लिए आवेदन दिया. समूह के लोग इनकी गरीबी को भलीभांति जान रहे थे.
फिर भी 20 हजार का लोन तत्काल स्वीकृत कर इनका हौंसला बढ़ाया. दीदियों ने भी अपनी जेब से 50 रूपये से लेकर पांच हजार तक का चंदा दिया. इसके बाद हुए पैसे की कमी को श्यामली ने अपने जीवन यापन के आधार एक गाय को बेच कर किया. घर-घर संपर्क कर वोट मांगी. समर्थन के साथ जीत का आशीर्वाद भी मिला. मतगणना में श्यामली देवी ने अपने प्रतिद्वंदी को पांच हजार 49 मतों से पराजित कर जिला परिषद सदस्या के रूप में निर्वाचित घोषित की गयी.
शपथ ग्रहण समारोह के वक्त भी जीविका द्वारा सिखाया गया हस्ताक्षर काम आया व गर्व से अपना हस्ताक्षर कर सकी. जिप सदस्या बनने के बाद भी वह अपने पुराने दिन को नहीं भूली है.
आज भी वह अपनी एक गाय को चारा देना व पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन करना नहीं भूलती है. इधर पार्षद बनने के बाद बैठकों में जाना, सामाजिक कार्यों में भाग लेने जैसे अन्य कार्यों को भी बखूबी निभा रही हैं. डीपीएम जीविका आरके निखिल, संचार प्रबंधक रवि केशरी ने बताया कि श्यामली दीदी समूहों के निर्माण कार्य में आने वाली बाधा, जागरूकता में हमेशा से आगे रही हैं.
समूह में महिलाओं के साथ रुपये गिनती श्यामली देवी.

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