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पहले ड्रेनेज सिस्टम हो चालू

करें पहल. जलनिकासी के लिए मुहल्लों का सर्वे कराये प्रशासन ड्रेनेज सिस्टम के लिए 24 करोड़ की योजना स्वीकृत करायी गयी है. लेकिन इसके चालू होने के पहले ही सड़क व नाले बनाये जा रहे हैं. ऐसे में बाद में ड्रेनेज सिस्टम के निर्माण में परेशानी हो सकती है. यह भी हो सकता है कि […]

करें पहल. जलनिकासी के लिए मुहल्लों का सर्वे कराये प्रशासन

ड्रेनेज सिस्टम के लिए 24 करोड़ की योजना स्वीकृत करायी गयी है. लेकिन इसके चालू होने के पहले ही सड़क व नाले बनाये जा रहे हैं. ऐसे में बाद में ड्रेनेज सिस्टम के निर्माण में परेशानी हो सकती है. यह भी हो सकता है कि बाद में जलजमाव का उचित निदान न हो सके. ऐसे में लोगों ने प्रशासन से मास्टर प्लान जारी करने की मांग की है.
सहरसा : मानसून के आने में अभी तकरीबन छह माह का समय शेष है. नवंबर महीने में ही डीएम बिनोद सिंह गुंजियाल के प्रयास से ड्रेनेज सिस्टम के लिए साढ़े 24 करोड़ रुपये की योजना भी स्वीकृत करा ली गई है. लेकिन जलनिकासी के लिए अब तक मुहल्लों का सर्वे शुरू नहीं कराये जाने से लोगों की चिंता बढ़ने लगी है. लोगों ने बरसात से पूर्व प्राथमिकता के आधार पर जलनिकासी की स्थायी व्यवस्था करने की मांग की है. साथ ही तब तक नये सिरे से सड़क अथवा नाले के निर्माण पर भी रोक लगाने की मांग की है.
जलजमाव से पूरा शहर है प्रभावित: पूरब से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण शहर की बसावट भिन्न-भिन्न है. मुख्य बाजार को छोड़ शहरी क्षेत्र के सभी इलाकों में जलजमाव की जटिल समस्या है. सरकार की अनदेखी के कारण हर साल यह नासूर की तरह चुभती रही है. लगभग दशक-दो दशक पूर्व तक जलजमाव की समस्या इतनी विकराल नहीं थी. क्योंकि हर इलाके में पर्याप्त खाली जगह या गड्ढे थे, जहां पानी का बहाव हो जाता था. लेकिन बढ़ती जनसंख्या व लगातार बनते गये घर-मकानों के कारण सारे खाली स्थान व गड्ढ़े भर गये. कई इलाकों के जलजमाव वाले रैयती क्षेत्र बिक गये हैं या सरकारी भूखंड अतिक्रमण कर लिए गए हैं. जिससे पानी अपने इलाके में ही घुमड़ कर रह जाता है. हालांकि कई मुहल्लों में नाले बने हुए हैं. लेकिन उसका लेवल जमाव क्षेत्र से या तो नीचा है या फिर जमाव क्षेत्र खुद ही भरा पड़ा है. जहां से पानी वापस इन मुहल्ले के नालों में ही आ रहा है.
शहर की बनावट का करें अध्ययन: सहरसा-सुपौल रेलखंड शहर को दो भागों में बांटता है. पूर्व और पश्चिम. दोनों इलाकों के बहाव को एक दिशा में नहीं मोड़ा जा सकता है. लिहाजा पूर्वी भाग के पानी को पूरब और पश्चिमी भाग के पानी को पश्चिमी इलाके का ही रास्ता दिखाना होगा. ड्रेनेज सिस्टम लागू करने से पहले पानी के पूर्व के बहाव के रास्ते का अध्ययन करना जरूरी होगा. रेललाइन से पूरब का पानी बस स्टैंड, रहमान चौक, चाणक्यपुरी होते पॉलिटेक्निक की ओर बहता था. रहमान चौक के इसी बड़े नाले से प्रताप नगर, मीरा सिनेमा रोड, पूरब बाजार व गंगजला के कुछ इलाके के नाले जुड़े थे. जबकि पश्चिमी इलाके का पानी गांधी पथ, एबीएन हॉल के पीछे से सराही, बेंगहा होते पश्चिम जाता था. इस रास्ते के नाले से डीबी रोड, महावीर चौक, बनगांव रोड, धर्मशाला रोड, दहलान चौक, मीर टोला व कलाली रोड के नाले जुड़े हैं. इसके बावजूद शहर के कई इलाके इन दोनों बहाव क्षेत्रों से अछूते रह जाते थे. जैसे नया बाजार, अस्पताल कॉलोनी, शिक्षा कॉलोनी, कोसी कॉलोनी, कायस्थ टोला, गंगजला, गौतम नगर, पंचवटी, इस्लामियां चौक व अन्य.
न्यू कॉलोनी में ऐसे ही लग जाता है पानी(
आसपास से नीचे हैं कई इलाके
मुहल्लों की धरातल का अध्ययन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कई मुहल्ले आसपास के इलाकों से नीचे बसे हुए हैं. जहां चारों ओर का पानी बह कर गिरता है और पूरा मुहल्ला जलप्लावित हो जाता है. ऐसे इलाके में तत्काल नाला निर्माण से भी कोई फायदा नहीं होने वाला है. क्योंकि पानी का स्वाभाव ऊपर से नीचे की ओर बहना होता है.
नीचे से उपर की ओर नहीं. जैसे न्यू कॉलोनी, भारतीय नगर, गंगजला, गौतम नगर व अन्य. ऐसे इलाकों को उसी इलाके के जलबहाव क्षेत्र से जोड़ना श्रेयस्कर होगा. जनवरी महीने की दस तारीख बीतने के बाद भी सर्वे शुरू नहीं होने या मास्टर प्लान जारी नहीं होने से लोगों की परेशानी बढ़ती जा रही है. क्योंकि दो माह पूर्व ही लोगों ने शहर में भारी जलसंकट देखा था. हालांकि कई इलाकों में जलजमाव के निशान अभी भी बने पड़े हैं.

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