बदहाल आंबेडकर लाइब्रेरी, संविधान के निर्माता के नाम पर भी केवल खानापूर्ति
लाइब्रेरी प्रेरणा और शिक्षा के मजबूत केंद्र हैं.
पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं, होता है राजनीतिक उपयोग प्रतिनिधि, सहरसा संपूर्ण समाज के मसीहा रहे बाबा भीमराव अंबेडकर की मूर्ति और लाइब्रेरी की स्थापना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है. जनचेतना के इस मार्गदर्शक का साहित्य, शिक्षा और संविधान से गहरा नाता रहा है. इनके नाम पर लाइब्रेरी प्रेरणा और शिक्षा के मजबूत केंद्र हैं. लेकिन सहरसा में स्थापित बाबा भीमराव अंबेडकर लाइब्रेरी इससे इतर बदहाल पड़ा है. जहां पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं है. हां इसका राजनीतिक इस्तेमाल बेशक संगोष्ठी के लिए होता रहा है. मालूम हो कि इसके रखरखाव का जिम्मा नगर निगम का है. जिसके जिम्मे सुपर बाजार और कला भवन भी है. इसके विकास की बातें भी हवा हवाई हो चुकी है. दलितों की राजनीति और समाज में उनके उत्थान के लिए जितना काम बाबा भीमराव अंबेडकर ने किया, वैसा किसी भी संदर्भ में ढूंढ पाना मुश्किल होता है. संविधान के निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर के नाम पर सहरसा के प्रमंडलीय मुख्यालय में एक लाइब्रेरी की स्थापना की गयी थी. आज के दौर में लाइब्रेरी का महत्व इतना है कि दर्जनों लाइब्रेरी शहर में खुल चुकी है और बच्चे उसमें दिन-रात बैठकर ऊंची उड़ान के ऊंचे सपने और आला अधिकारी बनने का ख्वाब पाल रहे हैं. लेकिन लाइब्रेरी की जो सुविधा सरकार और स्थानीय प्रशासन को देनी थी, वह व्यवस्था इन सरकारी लाइब्रेरी से बिल्कुल गायब हो चुकी है. यह लाइब्रेरी और इसके साथ स्थानीय सभागार बने हुए हैं. जिसमें विचार गोष्ठियों, पुस्तक विमोचन, काव्य पाठ का दौर चलता रहता है. आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि बाबा भीमराव अंबेडकर के नाम पर बस स्टैंड के सामने स्थापित यह लाइब्रेरी विभिन्न मोर्चाओं के कार्यालय बन गये हैं, साथ ही इस लाइब्रेरी का रख रखाव जहां निगम के जिम्मे है, वहीं निगम की लचर व्यवस्था का उदाहरण इस लाइब्रेरी में भी झलकता है. यहां सिर्फ भवन खड़ा है बाकी लाइब्रेरी को चरित्रार्थ करने के लिए कोई सुख सुविधा, बेंच डेक्स, किताबें नहीं हैं. शिक्षा जगत में यह एक दुखद पहलू भी माना जा सकता है कि स्थानीय प्रशासन जिस लाइब्रेरी को बेहतर सुंदर और सुसज्जित तरीके से बच्चों को पढ़ने के लिए मुहैया कराता, वह अपनीने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. इतना ही नहीं अगर हम शहर में दूसरे सरकारी लाइब्रेरी की बात करें जो प्रमंडलीय लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है. उसमें भी काफी बड़े लागत के बाद बेशक कुछ बेंच डेस्क और किताबें तो है. लेकिन बच्चों को जो प्रतियोगिता परीक्षा की यहां तैयारी कर रहे हैं, उनके सभी सुख सुविधाओं के मद्देनजर ऐसी अच्छी व्यवस्था नहीं बन पा रही है. यहां भी संगोष्ठियों का दौर चलता रहता है. यहां बच्चे को पीने के पानी की भी समस्या रहती है. साथ ही फोटो प्रिंटर, प्रतियोगिता की परीक्षा से संबंधित मासिक किताबें और अखबार सहित कई जरूरी सुविधाओं का बिल्कुल ख्याल नहीं रखा गया है. आखिर इस बदहाली का जिम्मेदार कौन है. प्रमंडलीय पुस्तकालय के उत्थान की राजनीतिक घोषणा कभी-कभी तो सुनने में आती है, लेकिन दलितों के मसीहा और संविधान के निर्माता अंबेडकर के नाम पर बने इस लाइब्रेरी से स्थानीय राजनीतिज्ञ अलग क्यों पड़े हुए हैं. इसके विकास और व्यवस्था के लिए कोई आगे क्यों नहीं आ रहा है. इतना ही नहीं हल्की बारिश के बाद इस लाइब्रेरी में घुस पाना भी मुश्किल है. आसपास के लोग बताते हैं कि यहां लाइब्रेरी जैसा कुछ नहीं है. इसलिए यह बंद पड़ा रहता है. इस संबंध में उप महापौर गूड्डू हयात कहते हैं कि आने वाले बजट में इसके लिए प्रावधान किया जायेगा.
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