Bihar News: सहरसा. बिहार में बढ़ती मंहगाई ने आम जनता की रसोई पर गहरा असर डाला है. सब्जियों की आसमान छूती कीमतों ने लोगों की थाली से हरी सब्जियों को लगभग गायब कर दिया है. खासतौर पर हरी सब्जियों की कीमतों में इस कदर उछाल आया है कि मध्यम और निम्न वर्ग के परिवारों के लिए उन्हें खरीदना मुश्किल हो गया है. जहां कुछ महीनों पहले तक घरों में हरी सब्जियों की भरमार हुआ करती थी, वहीं आज लोग केवल जरूरी अनाज और दालों पर निर्भर होते नजर आ रहे हैं. सब्जियों का राजा कहे जाने वाला आलू भी लोगों की पहुंच से दूर हो गया है.
बढ़ती कीमतों का असर
सब्जियों के दामों में लगातार हो रही वृद्धि का सीधा असर आम लोगों पर पड़ रहा है. टमाटर, प्याज, हरी मिर्च और आलू जैसी रोजमर्रा की सब्जियां भी अब आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गये हैं. जहां कुछ दिन पहले बाजारों में टमाटर 20-30 रुपये प्रति किलो मिलता था, वहीं अब यह 80-100 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है. इसी तरह, पालक, धनिया, मेथी और अन्य हरी पत्तेदार सब्जियों की कीमतें भी तीन गुना तक बढ़ चुकी हैं. धनिया जो पहले 10-20 रुपये में मिल जाता था, अब 300 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है. आलू 40 रुपये, परवल 60 रुपये, बैंगन 60 रुपये, गोभी 120 रुपये, बंदगोभी 50 रुपये, ओल 60 रुपये, कुंदरी 60 रुपये, करैला 60 रुपये, भिंडी 40 रुपये, नेनुआ 30 रुपये लहसुन 300 रुपये प्रति किलो, हरी मिर्च 200 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. जबकि लौकी 40 से 50 रुपये प्रति पीस बिक रहा है.
सब्जी मंडी के अढतिया राजू चौधरी ने बताया कि खराब मौसम, बेमौसम बारिश और परिवहन लागत में वृद्धि मंहगाई का प्रमुख कारण हैं. कई इलाकों में भारी वर्षा और बाढ़ से सब्जियों की फसलें नष्ट हो गयी, जिससे बाजार में सब्जियों की आपूर्ति में भारी कमी आयी है.
गरीब और मध्यम वर्ग पर सबसे ज्यादा असर
मंहगाई का सबसे बड़ा असर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ा है. जो परिवार पहले अपनी थाली में कई तरह की सब्जियां रखते थे, वे अब केवल एक या दो किस्म की सस्ती सब्जियों पर निर्भर हो गये हैं. निम्न वर्ग के लिए दाल-रोटी ही अब भोजन का मुख्य हिस्सा बन चुका है. हरी सब्जियों की पोषण क्षमता से वंचित हो जाने के कारण बच्चों और बुजुर्गों में कुपोषण का खतरा भी बढ़ गया है.
सहरसा के गृहिणी रुणा देवी ने कहा कि हरी सब्जियों की कमी के कारण पौष्टिक भोजन बनाये रखने के लिए वैकल्पिक खाद्य पदार्थों दालों और सूखी सब्जियों का उपयोग करना पड़ता है. सब्जी की बढ़ती महंगाई के कारण घर का बजट बिगड़ रहा है.
टैक्सी चालक पप्पू कुमार ने कहा कि हरी सब्जियों की कीमतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे आम लोगों की जेब पर भारी दबाव पड़ रहा है महंगी सब्जियों के कारण लोग अपनी थाली से हरी सब्जियों को कम या पूरी तरह से हटाने पर मजबूर हो रहे हैं.
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सेल्स मैन माणिक शेखर ने कहा कि गृहणियों का मासिक बजट बिगड़ रहा है. क्योंकि वे अपनी सीमित आय में सब्जियों और अन्य जरूरी सामान का सही संतुलन नहीं बना पा रही हैं. हरी सब्जियों के सेवन में कटौती से पोषण में कमी हो रही है. जिससे परिवार के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.
प्लंबर मिस्त्री नारायण कुमार ने कहा कि लोग हरी सब्जियों की जगह सस्ती और कम पौष्टिक चीजों का उपयोग कर रहे हैं. जिससे भोजन की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले प्रतिदिन सौ रुपया का सब्जी कहां से खायेंगे.
प्राध्यापक डॉ रामानंद रमण ने कहा कि मंहगाई से आम लोगों की आर्थिक स्थिति और कमजोर हो रही है. जिससे उनके जीवन स्तर में गिरावट आ रही है. हरी सब्जियों के बिना शरीर को पोषक तत्व नहीं मिल रहा है. लेकिन बाजार में भाव सुनने के बाद बैरंग लौटना पड़ता है.
छात्र सनोज कुमार ने कहा कि पहले सप्ताह में तीन चार बार हरी सब्जी खरीदते थे. अब तो मंडी जाने का हिम्मत नहीं होती है. सब्जी का राजा आलू जो 10 रुपये किलो मिलता था, वह भी 35 रुपया किलो हो गया है. आलू भी निम्न वर्ग के लोगों की पहुंच से बाहर है. रोटी, नमक के साथ प्याज खाने वाले गरीब लोग अब प्याज भी नहीं खा पा रहे हैं.