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नववर्ष अपने रिवाज, संस्कार, संस्कृति के अनुरूप मनाएं

बसंत अपनी आहटें देने लगती है. अपना दस्तक जनवरी से ही देना शुरू कर देती है.

सहरसा नववर्ष के अवसर पर गायत्री शक्तिपीठ में बुधवार को कार्यक्रम आयोजित की गयी. कार्यक्रम को संबोधित करते ट्रस्टी डॉ अरूण कुमार जायसवाल ने कहा कि नववर्ष अपने यहां विक्रम संवत से शुरू होता है. कहीं चैत्र प्रतिपदा से, कहीं शक संवत से शुरू होता है. कहीं मकर संक्रांति से शुरू होता है, कहीं बैशाखी पूर्णिमा से शुरू होता है. पूरे देश में नववर्ष कई बार शुरू होता है. लेकिन आज जो शुरुआत नए साल की हो रही है इसे ईसाई नववर्ष कहते हैं. अपने देश भारत में जो शुरुआत की आहट मिलती है वो बसंत की आहट है. अंग्रेजों का नया साल होगा एवं जनवरी से होगा निश्चित रूप से होगा. लेकिन एक बात निश्चितरूपेण होती है. बसंत अपनी आहटें देने लगती है. अपना दस्तक जनवरी से ही देना शुरू कर देती है. यही वजह है कि कई बार बसंत जनवरी में पड़ती है. कभी फरवरी में पड़ती है. तो वातावरण भी हमारे देश का बदलना शुरू हो जाता. यह जनवरी के कारण नहीं बसंत के कारण होता है. थोड़े दिनों बाद मकर संक्रांति आएगी. मकर संक्रांति आने के साथ ही सर्दी घटना शुरू हो जाता है. सर्दी सच पूछे तो 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक अपने चरम पर रहती है. अपने देश में जो मौसम में परिवर्तन होता है, इसकी आहटें जनवरी के साथ ही शुरू हो जाती है. हमारे जो दो त्योहार हैं एक मकर संक्रांति एवं दूसरा वसंत पंचमी इसमें सर्दी के घटने की शुरुआत हो जाती है. यह दोनों त्योहार हमारे लिए बहुत मूल्यवान है. उसकी गणना इसी अंग्रेजी वर्ष से करते हैं. यह हमारे मनोमस्तिष्क में रच बस गया है. इस वजह से नया साल मनाते हैं एवं नया साल मनाने में कोई आपत्ति नहीं है. नया साल एक जनवरी को मनाएं, मकर संक्रांति को मनाएं, चैत्र प्रतिपदा को मनाएं, वैशाखी पूर्णिमा से मनाएं, दीपावली से मनायें, इसमें कोई समस्या नहीं है. लेकिन एक बात है मनाएं अपने तरीके से. केक बनाएं, केक बनाने से कोई मना नहीं करता, पर अंडे का केक क्यों बनाएं. हमारा जो रिवाज है, जो संस्कार है, जो संस्कृति है उस अनुरूप मनाएं. नववर्ष के इस अवसर पर शक्तिपीठ में बाल संस्कारशाला के बच्चे एवं स्वरांजलि के कलाकारों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया. लोगों ने इस अवसर पर लिट्टी चोखा, ईमरती खाते हुए पिकनिक की तरह आनंद लिया.

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