लोगों की असुविधा से नहीं है कोई मतलब, आये दिन हो रही दूर्घटना सोनवर्षाराज.पारिवारिक बंटवारे व निजी रहन-सहन के स्वभाव में अब लोगों ने खलिहान बनाना छोड़ दिया है. किसान अब अपने फसलों की तैयारी को लेकर सार्वजनिक रूप से सड़कों को ही अतिक्रमण कर खलिहान के रूप में उपयोग करने लगे हैं. इन दिनों मुख्य सड़क एनएच 107 के अलावा ग्रामीण सड़कों पर मक्का सुखाने की प्रक्रिया धड़ल्ले से की जा रही है. ऐसे में चौड़ी-चौड़ी सड़कें संकीर्ण हो जाने से वाहन चालकों की परेशानी बढ़ गयी है. वाहन से साइड लेने में थोड़ी सी चूक दुर्घटना की आशंका को बढ़ा दे रही है. साथ ही राहगीरों को आवागमन में हो रही परेशानी से मकई सुखाने वालों को कोई लेना-देना नहीं है. फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं होने से इन दिनों प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न सड़कों पर मक्का सुखाने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है. यही नहीं सड़क किनारे बसे लोग पशुचारा के अलावा मकान बनाने में प्रयुक्त ईंट, गिट्टी, बालू व अन्य सामान को भी सड़क पर ही रख देते हैं. मकई सूखा रहे किसानों की तानाशाही की हद तब दिखती है जब मकई सुखाने में पसारे गये मक्के को बड़े वाहन के टायर तले जाने से बचाने के लिए सड़क के बीचों बीच बड़ी-बड़ी लकड़ी, पत्थर आदि रख दिया जाता है. पर्याप्त सुविधा नहीं होने का देते है तर्क सड़क पर मक्का सूखा रहे किसानों का तर्क होता है कि हम लोगों के पास पर्याप्त जमीन नहीं है. इस वजह से मजबूरन हम लोगों को सड़क पर मकई सुखाना पड़ता है. साथ ही यह भी बताया जाता है कि सड़क गर्म रहने के कारण मक्का एक से दो दिनों में सूखकर तैयार हो जाता है. यही वजह की मक्के के सीजन में विभिन्न ग्रामीण सड़कों पर मक्का सुखाने का सिलसिला बरकरार रहता है. हालांकि किसानों का यह तर्क कई बार लोगों के जान पर बन आती है. सड़क पर फैले मक्के की वजह से वाहन चालक बड़े हादसे का शिकार हो जाते है. यातायात नियमों के पालन को लेकर सख्त प्रशासन भी सड़क अतिक्रमण मामले में मौन बनी रहती है. सड़क सुरक्षा व यातायात नियमों के पालन को लेकर सड़क पर मक्का सुखाने वालों के लिए कोई निर्देश जारी नहीं होने से फसल का समय आते ही किसान फसल की तैयारी से लेकर मक्का सुखाने तक का कार्य सड़क पर ही करते हैं. संसाधन का अभाव बता सड़क अतिक्रमण की बात को टाल जाते हैं.
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