दुर्गा पूजा आज से, हर ओर छाया है उल्लास

आज होगी कलश की स्थापना, दस दिनों तक महौल रहेगा भक्तिमय

By Prabhat Khabar News Desk | October 2, 2024 7:15 PM
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आज होगी कलश की स्थापना, दस दिनों तक महौल रहेगा भक्तिमय सहरसा नगर निगम क्षेत्र में दूर्गापूजा का उल्लास हर घर में छा गया है. सभी दूर्गा मंदिरों में गुरुवार से श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ पूजा अर्चना की जायेगी. जो आगामी 12 अक्तूबर तक जारी रहेगा. मंदिरों में सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं की भीड जुटेगी. मंदिरों में सुबह से लेकर देर रात्रि तक लगातार दूर्गा शप्तशती का निरंतर पाठ को लेकर तैयारी पूरी कर ली गयी है. मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जा रहा है जो अंतिम चरण में है. मंदिरों की भव्यता देखते ही बन रही है. माता की मूर्ति भी सजीव नजर आने लगी है. श्रद्धालु बडे मनोभाव से मैया की आराधना करेंगे. ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा ने कहा कि इस वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि तीन अक्तूबर गुरुवार से शुरू है. इस तिथि से शक्ति की साधना एवं आराधना शुरू हो जायेगी. शारदीय नवरात्रि तीन अक्तूबर से 12 अक्तूबर तक होगा. जिसमें नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है एवं अंतिम दिन विजयादशमी एवं विसर्जन होता है. कलश स्थापन वैसे तो दिन के तीन बजे तक की जा सकती है. लेकिन अति विशिष्ट मुहूर्त प्रातः काल जो अमृत योग में है. वो प्रातः 6.07 से 07.37 तक अति उत्तम एवं प्रातः 10.5 से तीन बजे दोपहर तक उत्तम है. पंडित तरुण झा ने बताया कि मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार इस वर्ष चतुर्थी की वृद्धि है एवं नवमी तिथी का क्षय है. सप्तमी वेध अष्ट्मी विहित नहीं है. इसलिए महाअष्ट्मी एवं महानवमी की संधि पूजा एवं व्रत शुक्रवार 11 अक्टूबर को ही होगा. जबकि निशा पूजा 10 अक्टूबर की रात में होगी. इस वर्ष शारदीय नवरात्रि पर देवी दुर्गा का पृथ्वी पर आगमन पालकी डोली की सवारी के साथ होगा एवं गमन मुर्गा पर होगा. नवरात्रि पर दुर्गा उपासना, पूजा, उपवास एवं मंत्रों के जाप का विशेष महत्व होता है. साथ ही दुर्गा सप्तसती का एक अध्याय ही सही, आरती एवं देवी क्षमा प्रार्थना हर घर में होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस कलयुग में देवी चंडी, दुर्गा एवं महादेव कि उपासना हमेशा कल्याणकारी होगी. इस बार गुरुवार को मां दुर्गा पालकी डोली पर सवार होकर आ रही है. देवी पुराण के अनुसार जब गुरु-शुक्र को देवी का आगमन होता है तो देवी का वाहन पालकी डोली होता है. माता के पालकी पर सवार होने का मतलब है रोग, शोक की संभावना होती है. वहीं मुर्गा के गमन के कारण विकलता का द्योतक है. उन्होंने बताया कि मां शैलपुत्री की पूजा तीन को, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा चार को, मां चंद्रघंटा की पूजा पांच को, मां कुष्मांडा की पूजा छह व सात को, मां स्कंदमाता की पूजा आठ को, मां कात्यायनी एवं गजपूजा नौ को, मां कालरात्रि की पूजा 10 को, मां महागौरी एवं सिद्धि दात्री की पूजा 11 को एवं विजया दशमी 12 अक्तूबर को मनाई जाएगी.

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