सहरसा . गायत्री शक्तिपीठ में रविवासरीय कार्यक्रम का शुभारंभ रुद्राभिषेक, हवन यज्ञ व विभिन्न संस्कार से किया गया. साथ ही व्यक्तित्व परिष्कार सत्र की शुरुआत गान, ज्ञान एवं ध्यान से किया गया. सत्र को संबोधित करते गायत्री शक्तिपीठ के मुख्य ट्रस्टी डॉ अरुण कुमार जायसवाल ने कहा कि इस जीवन में बिना संघर्ष किए, बिना कष्ट उठा, कोई व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता. जो तपेगा वही निखरेगा. हमारी शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए पर उन्होंने चर्चा की. उन्होंने कहा कि शिक्षा में पहला शिक्षक, दूसरा शिक्षार्थी, तीसरा शिक्षक प्रणाली, चौथा शैक्षणिक वातावरण होना आवश्यक है. यह सब हो तो ही शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो पाएगी. इन सब में सब कुछ होने के बाद शैक्षणिक वातावरण ना हो तो शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ नहीं हो पाएगी. उन्होंने कहा कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण वातावरण का होना है. आज जीवन मूल्य संकट में है. विश्वास का संकट खड़ा हो रहा है. यह वातावरण का ही प्रभाव है कि एक समय श्री अरविंद, भगत सिंह, विवेकानंद, महात्मा गांधी जैसे महामानव भी हुए. शिक्षक हमेशा प्रेरक होते हैं. वह माता-पिता होते हैं. जन्म से सब शुद्र होते हैं, संस्कारों से द्विज होते हैं. एक शिक्षक ही हमें द्विज बनाते हैं. शिक्षा दूसरा जन्म देने में सक्षम है तो ही शिक्षा सार्थक है. सुगढ़ हमें शिक्षक बनाते हैं, शिक्षा प्रणाली बनाती है. हम व्यक्ति के रूप में जन्म लेते हैं एवं शिक्षा हमें व्यक्तित्व देती है. शिक्षक, शिक्षा प्रणाली एवं शैक्षणिक वातावरण सही ढंग से मिल जाए तो शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का निर्माण हो जाता है. लेकिन आज शिक्षक, शिक्षार्थी एवं शैक्षणिक प्रणाली में द्वेष भर गया है. जब तक यह सब नहीं ठीक होगा, शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़, सुगढ़ नहीं बन पायेगा. इस अवसर पर गायत्री शक्तिपीठ के प्रजामंडल युवा मंडल, युक्ति मंडल एवं महिला मंडल मौजूद थे.
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