रिमझिम बारिश में भी लगते रहे महर्षि मेंहीं के जयकारे

बीसवीं सदी के महान संत महर्षि मेंहीं परमहंस की 140वीं जयंती धुमधाम से संपन्न

By Prabhat Khabar News Desk | May 22, 2024 12:37 PM

बीसवीं सदी के महान संत महर्षि मेंहीं परमहंस की 140वीं जयंती धूमधाम से संपन्न सहरसा . शहर के गांधीपथ स्थित संतमत सत्संग मंदिर में 20वीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस महाराज की 140वीं जयंती समारोह वैशाख शुक्ल चतुर्दशी बुधवार को धूमधाम से मनायी गयी. जयंती समारोह का शुभारंभ प्रभात फेरी से किया गया. प्रभात फेरी महर्षि मेंही परमहंस महाराज की तस्वीर रथ पर सजाकर बैंड बाजे व दर्जनों गाड़ियां के काफिले के साथ महर्षि मेंही के जयघोष के साथ नगर भ्रमण के लिए निकली. नगर भ्रमण के दौरान रिमझिम बारिश में भी संतमत अनुयायियों ने नारा लगाते कहा कि आज क्या है महर्षि मेंही जन्म दिवस सहित अन्य जयघोष के साथ नगर भ्रमण किया. जयंती के अवसर विशेष भंडारा का भी आयोजन किया गया. जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया. जयंती समारोह के अवसर पर आयोजित सत्संग में स्वामी महेशानंद महाराज ने सदगुरूदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते आजीवन ब्रह्मचारी रहकर ईश्वर की भक्ति में अपना समस्त जीवन बिता देने का संकल्प किया. वे आरंभ के अपने गुरु स्वामी श्रीरामानंद की कुटिया आ गये एवं वहां उनकी निष्ठापूर्वक सेवा कर रहने लगे. जब उन्होंने देखा कि गुरुजी इनकी जिज्ञासाओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं. तब ये किन्हीं सच्चे एवं पूर्ण गुरु की खोज के लिए निकल पड़े. भारत के अनेक प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों की इन्होंने यात्राएं की. लेकिन कहीं भी इनके चित्त को समाधान नहीं मिला. अंत में इन्हें जब जोतरामराय निवासी बाबू धीरज लालजी गुप्त ने मुरादाबाद निवासी परम संत बाबा देवी साहब एवं उनकी संतमत साधना के विषय में पता लगा. तब इनके हृदय में सच्चे गुरु एवं सच्ची साधना पद्धति के मिल जाने की आशा बंध गयी. बड़ी आतुरतावश बाबा देवी साहब द्वारा निर्दिष्ट दृष्टियोग की विधि भागलपुर नगर के मायागंज निवासी बाबू राजेंद्र नाथ सिंह से प्राप्त की तो इन्हें बड़ा सहारा मिला. उसी वर्ष विजया दशमी के शुभ अवसर पर राजेंद्र नाथ सिंह ने भागलपुर में ही बाबा देवी साहब से इनकी भेंट कराकर उनके हाथ में इनका हाथ थमा दिया. बाबा देवी साहब जैसे महान संत को पाकर निहाल हो गये. उनके दर्शन प्रवचन से इन्हें बड़ी शांति एवं तृप्ति का बोध हुआ. फिर जिलास्तर पर दो दिनों के लिए एवं अखिल भारतीय स्तर पर तीन दिनों के लिए जगह जगह वार्षिक सत्संग अधिवेशन होने लगे. इनके अतिरिक्त लोगों द्वारा प्रतिदिन नियत समय पर व्यक्तिगत एवं जब तब सामूहिक सत्संग, ध्यानाभ्यास भी किया जाने लगा. लोग इनके विचारों से प्रभावित होते गये. इस बाल, युवा, वृद्ध सभी तरह के लाखों स्त्री पुरुषों ने इनके मधुर, स्नेहिल एवं उपकारी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर इनके साथ कदम से कदम मिलाकर अध्यात्म पथ पर चलना स्वीकार किया. आज भारत के विभिन्न राज्यों, नेपाल, जापान, रूस, अमेरिका, स्वीडेन सहित अन्य देशों में फैले इनके शिष्यों की संख्या पर्याप्त है.

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