मत्स्य पालन कर गांधी प्रसाद ने बेरोजगारी के दंश को छोड़ा पीछे

मत्स्य पालन कर गांधी प्रसाद ने बेरोजगारी के दंश को छोड़ा पीछे

By Prabhat Khabar News Desk | December 14, 2024 5:56 PM

पांच एकड़ में पोखर बना सालाना आठ से दस लाख की कर रहे आमदनी सहरसा . कड़ी मेहनत व सच्ची लगन से प्रयासरत मानव निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करते हैं. यह एक कहावत नहीं बल्कि अक्षरशः सत्य है. इसका जीता जागता उदाहरण जिले के सिमरी बख्तियारपुर अंचल के सकरा-पहाड़पुर गांव निवासी मत्स्य कृषक गांधी प्रसाद यादव हैं. उन्होंने वर्ष 1982 में राजनीतिक शास्त्र से स्नातक पास करने पर रोजगार की तलाश में इधर-उधर प्रयास शुरू किया. लेकिन सरकारी नौकरी नहीं मिली. निराश एवं हताश श्री यादव अपने पैतृक जमीन में ही परंपरागत धान की खेती शुरू की. इनका गांव एवं खेत कोसी नदी के कछार पर स्थित होने के कारण काफी मुश्किल से मात्र एक फसल धान की ही हुआ करती थी. लिहाजा इनकी आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन दैयनीय होती गयी. लेकिन कुछ नया करने की चाहत ने इनको कुशल मत्स्य पालन से लाखों का कारोबारी बना दिया. अपनी सफलता की कहानी बयां करते गांधी प्रसाद यादव ने कहा कि वर्ष 1982 से 2015 तक परंपरागत खेती करते बहुत कुछ हासिल नहीं कर सके. प्रतिवर्ष बाढ़ के कारण खेत-खलिहान बराबर हो जाया करती थी. इसलिए इसी बाढ़ को ढाल बनाकर अच्छा करने की चाहत ने उन्हें मंजिल की राह दिखायी. वर्ष 2016-2017 में गांव में ही मात्र 15 कठ्ठा जमीन में तालाब बनाकर प्रथम बार मत्स्य पालन किया. जिसमें 70 हजार रुपये की लागत के बाद खर्च काटकर एक लाख 10 हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा ने उनके मनोबल को बढ़ाया. फिर उनके उड़ान को मानो फंख लग गया. जिला मत्स्य कार्यालय सहरसा के संपर्क में आने के बाद कुशल निर्देशन में पांच एकड़ जलक्षेत्र में मुख्यमंत्री समेकित चौर विकास योजना से तीन तालाब का निर्माण किया. जिसमें इन्हें 6.84 लाख रुपये की अनुदान दी गयी. जिसमें प्रतिवर्ष रोहू, कतला, नैनी व गोल्डेन की खेती करना शुरू कर दिया. अब मात्र पांच एकड़ जमीन में बने तालाब से 6 से 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष की आमदनी शुरू हो गयी. इसी दौरान सहरसा स्थित मत्स्य विभाग ने इन्हें उन्नत मत्स्य पालन की गुर सिखाने वर्ष 2021-22 में पंतनगर विश्वविद्यालय उत्तराखंड भेजा. वहां से लौटने पर गांधी प्रसाद यादव प्रशिक्षित मत्स्य किसान होकर कम जगहों में अधिक मत्स्य उत्पादन के लिए विभाग से एरेटर मशीन, इनपुट योजना, पंपसेंट बोरिंग तथा अन्य लाभ लेकर सिर्फ पांच से छह माह में छह हजार से आठ हजार किलोग्राम देसी मछलियां उत्पादन कर सलाना आठ से 10 लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा करते हैं. इन्हें देखकर गांव व आसपास के कई किसान भी मत्स्य पालन करने लगे हैं.

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