उड़ती धूल बना बड़ा कारण प्रतिनिधि, सहरसा चलती फिरती रोजमर्रा की जिंदगी में कभी यह नहीं पता चलता है कि आप कब बीमार होंगे. कैसे बीमार होंगे और जब लाइफ ठीक-ठाक चल रही हो तो भला क्यों बीमार होंगे, लेकिन होता उल्टा है. प्रदूषण ऐसा बड़ा कारण है जिसमें छोटी-छोटी गलतियों से लोग बीमारियों को गले लगा लेते हैं. उन्हें पता भी नहीं चलता है. यदि गौर करें तो सहरसा जिला में बड़े पैमाने पर पुल, पुलिया, ओवरब्रिज, बड़े कल-कारखाने, मॉल, सिनेमाघर का निर्माण नहीं हो रहा है तो आपको प्रदूषण से बीमार होने का भला कौन सा कारण है. लेकिन यह जानकर आप हैरत में पड़ जायेंगे कि शहर के वयस्क लोगों की बात छोड़िए, बच्चों के बीमार होने की संख्या भी सैकड़ों में है और यह तेजी से बढ़ रहा है. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ विजेंद्र देव कहते हैं कि बच्चों में अस्थमा के केस बड़े पैमाने पर अब सामने आ रहे हैं, पहले डायरिया, सर्दी खांसी का केस ज्यादा आता था, लेकिन अब इस तरह के केस आने से चिंताएं बढ़ी है. यह सतर्कता और समाज में जागरूकता पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. डॉ विजेंद्र देव कहते हैं कि धूल, धुआं, एलर्जी, सीलन भरे कमरे, बिस्तर, घरों के परदे पर जमीं धूल भी एक बड़ा कारण है. यहां कल कारखाने या बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य नहीं हो रहा है, लेकिन सड़कों पर उड़ती धूल, रेलवे फाटक के जाम में खड़ी गाड़ियों द्वारा उगला जाने वाला कार्बन मोनोऑक्साइड समेत कई ऐसे कारण भी हैं. शहर के बीचो-बीच रेलवे रैक पॉइंट, जहां से माल ढुलाई व उतराई का काम होता है, वहां से उड़ते बारीक धूलकण भी श्वसन क्रिया को कहीं ना कहीं प्रभावित करने में सक्षम हो रहे होंगे. मेडिकल आंकड़ा करता है चिंतित अस्थमा इनहेलर बनाने वाली कंपनियों में सिप्ला, लूपिन, मेडिसोल लाइफ साइंस, रेडविंग फार्मा, न्यूट्रल रेस्पिरो, एक्सट्रेजनिका सहित कई कंपनियां ऐसी है जो बेहतर सांस या श्वसन प्रणाली को तंदुरुस्त रखने में इन इनहेलर का निर्माण करती है और ये इनहेलर मरीजों को काफी मदद करता है. अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, सीओपीडी के खांसी, व्हीचिंग और सांस फूलने जैसे लक्षणों में भी यह राहत देता है. इनहेलर बनाने वाली कंपनियों का यह व्यवसाय इस जिले में औसतन लगभग 60 लाख रुपयों का है. जबकि एक इनहेलर की औसतन कीमत लगभग 500 रुपये बैठती है. इन आंकड़े में वयस्कों के उपयोग वाले व अन्य इनहेलर शामिल भी नहीं है. चौंकाने वाली बात यह है कि उड़ती धूलकण भी एक सबसे बड़े कारणों में से एक कारण है. शहर के प्रदूषण जांच मानको पर गौर करेंगे तो आप पायेंगे कि जिला मुख्यालय में बुधवार 22 जनवरी को दिन के लगभग 11 बजे हवा की गुणवत्ता अर्थात एक्यूआई लेवल 177 थी. शहर का उच्चतम एक्यूआई लेवल 288 तक भी रहा है जो स्वास्थ्य के लिए कदापि ठीक नहीं है. शहर के ग्लोबल रैंकिंग की बात करें तो यहां इसका स्थान 1210 है, जो बेहद चिंता की बात है. जहां एक ओर दवाओं की खपत आपके बच्चों के स्वास्थ्य के ऊपर हो रहे प्रभावों को दर्शाता है. वहीं एक क्यूआई लेवल भी आपकी चिंता को बढ़ाने के लिए काफी है. निदान क्या है विशेषज्ञ कहते हैं कि सड़कों पर प्रतिदिन झाड़ू लगाना और पानी का छिड़काव जरूरी है. जिससे वायुमंडल में मिलने वाला डस्ट पार्टिकल्स की मात्रा पर कुछ हद तक काबू पाया जा सके. शहर में वाहन और फैक्ट्री द्वारा कार्बन उत्सर्जन पर भी नजर रखी जाये. वैसे शहरों में महीन धूलकण और गांव में जलावन से उत्पन्न धुंआ, फसलों की तैयार करने में उपयोगी थ्रेसर मशीन से उड़ते डस्ट पार्टिकल भी अस्थमा, खांसी, फेफड़ा की समस्या का एक बड़ा कारण है. डॉ विजेंद्र देव कहते हैं कि साफ सफाई में सतर्कता रखना और जागरूकता से ही बचाव संभव है, काफी हद तक आप बीमारी को अपने पास आने से रोक सकते हैं. फोटो – सहरसा 01 – मरीज की जांच करते चिकित्सक.
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