मिथिला की प्राकृतिक सौंदर्य एवं अलौकिक परंपरा का सम्मिश्रण का होता है दृष्टिगोचर सहरसा मिथिलांचल के नवविवाहिताओं का पारंपरिक पर्व मधुश्रावणी बुधवार को हर्षोल्लास से संपन्न हो गया. मिथिला की प्राकृतिक सौंदर्य एवं अलौकिक परंपरा का सम्मिश्रण इस पर्व में दृष्टिगोचर होता है. प्रकृति के साथ एकात्मता एवं सह-अस्तित्व में ही पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित है. आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों की दिव्यता के स्मरण एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए आस्था एवं सौभाग्य वृद्धि का विशिष्ट पर्व मधुश्रावणी प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी संपूर्ण मिथिला में नवविवाहित महिला द्वारा निष्ठापूर्वक मनाया गया. अपने पति कीके लंबी आयु के लिए मैथिला की नवविवाहिता सावन महीने के कृष्णपक्ष के पंचमी तिथि से तेरह दिन तक नियम निष्ठापूर्वक माता पार्वती, महादेव एवं विषहरा माता की पूजा आराधना करती है. मिथिला का यह सांस्कृतिक पर्व सदियों से लोक जनमानस में रची बसी है. जिसमें नवविवाहिता नाग देवता की पूजा कर पति के दीर्घायु होने की कामना करती है. सावन माह के कृष्ण पक्ष के पंचमी को यह पर्व प्रारंभ होता है. इस दिन नवविवाहिताएं ससुराल से आये नये वस्त्र पहन कर पूजा पर बैठती है. लगभग 15 दिनों की अवधि में वे नमक नहीं खाती हैं. साथ ही ससुराल से आया अन्न ही ग्रहण करती है. नवविवाहिताएं प्रतिदिन अपने सखियों के संग बाग बगीचे व फुलवारियों से फूल व फुल का पत्ता चुन कर कोहबर घर में रखती हैं. जिससे दूसरे दिन प्रात:काल बासी फूल पतों से विषहरा की पूजा की जाती है.
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