प्रतिनिधि, सहरसा. पीएम केयर फंड से लगा करोड़ों के ऑक्सीजन प्लांट में अब जंग लगने शुरू हो गया है. जंग के साथ साथ बिना मरम्मती के ऑक्सीजन प्लांट का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता दिख रहा है. दो सिविल सर्जन का कार्यकाल तो ऑक्सीजन प्लांट की समस्या को समझने में ही निकल गया और उनका स्थानांतरण भी हो गया. लेकिन प्लांट की समस्या जस की तस बनी रही. जबकि पूर्व में कई बार सदर अस्पताल का निरीक्षण करने के दौरान ऑक्सीजन प्लांट मामले में संज्ञान लेने वाले जिलाधिकारी का अस्पताल प्रबंधन को मिला निर्देश भी फिसड्डी साबित हो गया. लेकिन अस्पताल प्रबंधन सिर्फ ऑक्सीजन प्लांट को दुरुस्त करने के नाम पर सिर्फ पत्राचार करने में ही लगभग डेढ़ वर्ष गुजार दिये. आखिर में सदर अस्पताल के खराब पड़े करोड़ों के ऑक्सीजन प्लांट का मुद्दा विधानसभा में भी गूंज उठा. जिसे स्थानीय विधायक डॉ आलोक रंजन ने गंभीरता से रखा. लेकिन सदर अस्पताल के मरीजों को ऑक्सीजन प्लांट से मिलने वाली सुविधा के नाम पर राज्य स्वास्थ्य समिति के सुस्त रवैये के बीच प्रबंधन की लापरवाही का सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है. लेकिन नये सीएस के आने के बाद मरीज व उनके परिजनों में एक उम्मीद की किरण जगी है कि उनके कार्यकाल में मरीजों को सदर अस्पताल में डेढ़ वर्ष से खराब पड़े ऑक्सीजन प्लांट से जिंदगी की सांसें मिलेगी. उनके बेहतर प्रबंधन से अस्पताल को बेहतर तरीके से सुदृढ़ व सुचारू रूप कार्य संचालित किया जायेगा. जबकि पूर्व में किसी भी समस्या को लेकर प्रबंधन के लोगों से पूछे जाने पर इनलोगों के पास बहाना या जवाब पहले से तैयार रहता था. यह सभी लोग व्यवस्था को दुरुस्त या कमी को पूरा करने के लिए किसी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते थे. ऐसी व्यवस्था के बीच सदर से लेकर मॉडल अस्पताल तक के मरीजों को भी समझ आने लगा था कि अस्पताल प्रबंधन किस तरह से अस्पताल को खोखला करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. अस्पताल में मरीजों की जरूरत पर खर्च के नाम पर बेहिसाब लूट मची हुई थी. जिसमें मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन ऑक्सीजन भी था. जो आज भी लूट के स्वरूप को अपनाए हुए है. जिसे पूर्व में बड़े अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था को पूर्ण रूप से बहाल करने के लिए बाहर से खरीदने की मजबूरी थी. लेकिन ऑक्सीजन की कमी को रोकने व ऑक्सीजन पर होने वाले बेहिसाब खर्च की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने कोरोना काल में पीएम केयर फंड से करोड़ों का ऑक्सीजन प्लांट सदर अस्पताल को दिया. बावजूद पहले से सरकारी खजाने पर नजर बनाने वाले अस्पताल प्रबंधन के कुछ लोगों ने ऑक्सीजन प्लांट के अस्तित्व को खत्म करने की ठान ली है. शुरुआत में तो समस्या बताकर ऑक्सीजन प्लांट को महीनों तक बंद रखा गया. उसके बाद बंद के दौरान ही प्लांट में खराबी का दौर शुरू हो गया. जिसके बाद प्रबंधन के लोग लगभग डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी प्लांट के खराबी को सिर्फ पत्राचार तक ही सीमित रखा. जबकि सदर अस्पताल परिसर स्थित राज्य के पहले करोड़ों के मॉडल अस्पताल के मरीजों का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन डेढ़ वर्ष से पूरी तरह खराब है और राज्य स्वास्थ्य समिति उसपर कोई संज्ञान नहीं ले रही है यह सोचने का विषय है. जबकि इस दौरान पूरा सदर अस्पताल परिसर सिर्फ भाड़े की सांस पर ही टिकी हुई है. पूरा अस्पताल प्रबंधन खुद के ऑक्सीजन प्लांट में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा कर निजी ऑक्सीजन प्लांट से ऑक्सीजन खरीदने में अपनी पूरी दिलचस्पी दिखा रही है. पूछे जाने पर सिविल सर्जन डॉ कात्यायनी मिश्रा ने बताया कि ऑक्सीजन प्लांट की समस्या से अवगत है. विभाग को चिट्ठी भी लिखा गया है. यह समस्या हमलोगों के स्तर का नहीं है. एजेंसी स्तर का ही है. वैसे यह समस्या सिर्फ यहां ही नहीं है. कई जगहों पर इस तरह की समस्या आयी है. विभाग लगी हुई है. दो तीन महीने में ऑक्सीजन प्लांट चालू हो जाना चाहिए.
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