अभिभावक बेबस, मोबाइल की लत से पढ़ाई, स्वास्थ्य हुआ चौपट, काउंसलिंग की उठी मांग
अभिभावक बेबस, मोबाइल की लत से पढ़ाई, स्वास्थ्य हुआ चौपट,
सहरसा . एक बच्चे की क्लास में सोते रहने की आदत से परेशान शिक्षक ने जब उसके माता-पिता को विद्यालय बुलाकर पूछा तो हैरान रह गए. उनके बच्चे को रात में मोबाइल देखते हुए सोने की आदत थी. पिता ने बताया कि मोबाइल नहीं रहने की स्थिति में वह सो नहीं पाता है. कोई चारा न देखकर वह बच्चे को मोबाइल दे वे खुद सो जाते हैं व बच्चा रात के दो-तीन बजे तक मोबाइल देखता हुआ सो जाता है. यह उदाहरण सिर्फ एक बच्चे की नहीं है. ऐसी ढेरों शिकायतें हैं. कुछ इसे शेयर करते हैं तो कुछ बिल्कुल चुप रह जाते हैं. चाहते हैं कि इस पर चर्चा भी ना हो. कोई उपाय भी नहीं दिखता. शिक्षक अभिभावकों के मत्थे सब दोष दे देते हैं. सवाल यह है कि नैतिकता व स्वस्थ जीवन का पाठ पढ़ाने का दायित्व रखने वाले शिक्षक उसे विद्यालय में सजा देकर या विद्यालय से निष्कासित कर समाज के प्रति क्या अपनी ही जिम्मेदारी ठीक से निभा पा रहे हैं. इसे समाज के सामने सार्वजनिक विमर्श का मुद्दा क्यूं नहीं बनाना चाहिए. यह एक बड़ा सवाल है. अभिभावक पूछते हैं कि आखिरकार इस आदत, नैतिक ह्रास या लत की जिम्मेदारी उठाते इसे सुधारने का बीड़ा कौन उठाएगा. मालूम हो कि जिले में ढाई सौ से ज्यादा विद्यालय प्राइवेट क्षेत्र में हैं एवं सरकारी विद्यालय भी सैकड़ों की तादाद में हैं. शहर एवं देहात के क्षेत्र में कुछ फर्क तो दिखता है. लेकिन बढ़ते इंटरनेट का प्रचलन, बड़े-बड़े स्मार्टफोन से अब कोई अछूता नहीं बचा है. ओटीटी प्लेटफॉर्म व अन्य सीरीजों में चलने वाली सीरियल ने छात्र छात्राओं दोनों को प्रभावित किया है. छात्र-छात्राओं के बीच अब सामान्य गालियों से ऊपर विभत्स गालियों का प्रचलन होने लगा है. कैसे हो समस्या का समाधान जहां पढ़ने एवं वर्ग कक्षाओं में लिखने की आदत कम होती जा रही है. वहीं ऑनलाइन का प्रचलन बढ़ने से किताबों की रीडिंग हैविट छूटती जा रही है. मोबाइल रेडिएशन का खतरा अलग से बढ़ता जा रहा है. साथ ही स्वास्थ्य भी लगातार प्रभावित होता है. इन सब कारणों से छोटे बच्चों में आंखों की समस्या काफी तेजी से बढ़ी है. उधर बच्चों के चिकित्सक डॉ विजेंद्र देव कहते हैं कि मोबाइल लगातार एक घंटे से ज्यादा देखने पर मोटापा बढ़ता है. आप उसके साथ स्नैक्स लेते हैं तो बच्चों का मोटापा दो गुना तेजी से बढ़ता है. साथ ही बच्चे प्यूबर्टी एज जल्द प्राप्त कर लेते हैं. शारीरिक विकास की यह अवस्था एवं किशोर वय समय से पहले प्राप्त करना भी स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है. डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों में लगातार मोबाइल देखने के कारण उनके आंखों में जलन, रोशनी कम होना, मायोपिया जैसे बीमारियों को जन्म दे सकता है. डॉ विजेंद्र देव कहते हैं कि पुरानी व्यवस्था के तहत जो संयुक्त परिवार की संकल्पना थी उसमें हमें कई मायनों में लौटना पड़ेगा. मानसिक व बौद्धिक विकास के लिए भी यह जरूरी है. बच्चों के बीच आउटडोर गेम का चलन ही समाप्त हो गया है. डॉ देव कहते हैं की बोर्डिंग स्कूल भेजना अभिभावकों को कहीं आने वाले समय में मजबूरी ना बन जाए. बदलते परिदृश्य में शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ी है. समाज को संवारने के लिए जहां शिक्षकों की भूमिका सदैव से प्रशंसनीय रही है. बच्चों में स्वास्थ्य समस्या के समाधान के संदर्भ में पूछने पर डॉ ब्रजेश कुमार सिंह कहते हैं कि बच्चों को टीवी ही देखने दें एवं मोबाइल से दूर रखें. स्वयं भी माता-पिता ज्यादा से ज्यादा समय बच्चों को दें. अब फिर से परिवार एवं बच्चों की मानसिक, बौद्धिक व नैतिक स्तर में बदलाव के लिए विद्यालय के शिक्षकों को भी आगे आना होगा. जरूरत पड़ने पर उन्हें स्वयं में भी बदलाव लाना होगा. अन्यथा बिखरते समाज में यह स्मार्टफोन बौद्धिक एवं मानसिक बिखराव के लिए जिम्मेदार होगा. शिक्षक व माता-पिता केवल तमाशबीन बनकर रह जाएंगे. वैसे इस पर अभिभावकों का ध्यान देना भी जरूरी है. यह समस्याएं एक कि नहीं बल्कि पूरे समाज की है. अभिभावक ने इस संदर्भ में बच्चों की काउंसलिंग करवाने, डॉक्टर से विमर्श का विद्यालय ही यह सुविधा प्रदान करें इसकी मांग की है. कई बोर्डिंग स्कूल अपने यहां काउंसलिंग के लिए बतौर डॉक्टर भी नियुक्त कर रखा है.
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