अलौकिक शक्ति पीठ के लिए प्रसिद्ध है पोठिया दुर्गा मंदिर
दुर्गापूजा के नवीं और दसवीं को यहां बलि देने की प्रथा परंपरागत रूप से भक्तजन देते हैं.
समेली फलका प्रखंड क्षेत्र के पोठिया बाजार स्थित 208 वर्ष पुराने ऐतिहासिक श्रीश्री 108 दुर्गा मंदिर पोठिया में हजारों भक्तजनों की असीम आस्था जुड़ी हुई है. नवरात्रि के अवसर पर कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा का निर्माण कुशल शिल्पकारों से कराया जाता है. दुर्गा मां के बाद इसी मंदिर में फिर काली की स्थापना और पूजा अर्चना काफी भव्य रूप से किया जाता है. दुर्गापूजा के नवीं और दसवीं को यहां बलि देने की प्रथा परंपरागत रूप से भक्तजन देते हैं. दो दिनों के भीतर करीब एक हजार से अधिक खस्सी की बलि दिया जाता है. मान्यता है कि बलि देने से माता भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण कर देती है. साथ ही यहां पूजा के अवसर पर यहां भव्य मेले के आयोजन के साथ-साथ कुश्ती प्रतियोगिता लोगों के आकर्षण का केंद्र होता है. मंदिर का इतिहास का पुराना सन 1815 ईवीं में यहां स्थानीय पूर्वजों ने सार्वजनिक रूप से मंदिर स्थापित की थी. आज से 208 वर्ष पूर्व पोठिया बाजार से सटे गद्दी घाट के कोशी नदी में मां दुर्गा की एक मूर्ति बहकर आयी थी. पोठिया गांव के स्व संतलाल मंडल व जयलाल मंडल के पूर्वजों ने उस मूर्ति को लाकर मां दुर्गा की पिंडी स्थापित कर एक झोपड़ीनुमा मंदिर का निर्माण कराया. करीब 13 वर्ष पूर्व यहां 65 फीट ऊंची विशाल भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. शब्दा गांव वाले को पहले बली देने का फिर कोहबारा गांव वाले को मुख्य ध्वजारोहण का अधिकार दिया गया जो परंपरा उसी समय से चली आ रही है. मंदिर का निर्माण वास्तु विशेषज्ञों ने कराया 65 फ़ीट विशाल मंदिर का निर्माण प्राचीन मंदिर के स्वरूप में किया गया. क्योंकि मंदिर का निर्माण वास्तु विशेषज्ञों व पंडितों के सलाह एवं गणना के आधार पर किया गया है. इसी आधार पर जगह का चुनाव व मंदिर का नामाकरण किया गया. साथ ही इस मंदिर का आकृति काफी आकर्षक है. जिसके कारण मंदिर की अलौकिक शक्ति की चर्चा क्षेत्र में होती है. मंदिर का विशेषता मंदिर की खास विशेषता है कि इस मंदिर में माता दुर्गा के बाद यहां मां काली की भी प्रतिमा स्थापित होती है. साथ ही यहां 51 किलो वजन के लड्डू का भोग लगाया जाता है. दसवीं को यहां मूर्ति विसर्जन का कार्यक्रम भी आकर्षक होता है. मेले श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र दुर्गा पूजा व दशहरा के अवसर पर लगने वाले मेले में,भक्ति जागरण, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कुश्ती प्रतियोगिता, बच्चों का झूला, कठपुतली, सर्कस आदि आकर्षण के केंद्र होते हैं. इसके अलावा मेले में खिलौने के दुकान, फर्नीचर, बर्तन व विभिन्न प्रकार के मिठाई तथा छोले, चाट, घुपचुप की दुकानों पर लोगों की भीड़ लगी रहती है. कहते हैं पुजारी मंदिर के पुजारी बाबा निर्मल झा कहते हैं कि वर्षों पुरानी इस मंदिर से लोगों का असीम आस्था और श्रद्धा जुड़ी हुई है.यहां मांगी गई सभी नेक मन्नते माता पूरी करती है. ग्रामीणों एवं कमेटी के आपार सहयोग के कारण हर्षोउल्लास पूर्वक नवरात एवं दशहरा धूम-धाम से मनाया जाता है. कहते हैं मंदिर समिति के अध्यक्ष मंदिर समिति के अध्यक्ष सह मुखिया ह्रदय नारायण यादव कहते है कि गांव के पूर्वजों को सपना दिया गया कि केले के थाम काटने से जहां खून निकलने लगा. मंदिर का स्थापना करना है. इस तरह हजारों भक्तजन के समक्ष स्थापित दुर्गा मंदिर स्थल पर खून निकला और लोगों ने यहां मंदिर की स्थापना की गयी. उन्होंने बताया कि पूजा समिति के सदस्यों और ग्रामीणों का भरपूर सहयोग मिलता है. पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि श्रद्धालों को तकलीफ न हो इसलिए युवा सदस्य इसका पूरा ख्याल रखेंगे.
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