राजकमल की जयंती पर हुई संगोष्ठी
राष्ट्र भाषा हिंदी व मातृभाषा मैथिली में समाज में व्याप्त कुरीतियों व सामंती प्रवृत्ति पर जमकर प्रहार किया
महिषी मुख्यालय पंचायत महिषी उत्तरी निवासी व हिंदी, मैथिली व बंगला साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार स्व राजकमल चौधरी के 95 वें जन्मदिन पर लहटन चौधरी इंटर कॉलेज पस्तवार बलुआहा में पुष्पांजलि समारोह का आयोजन कर श्रद्धांजलि दी गयी. महाविद्यालय प्राचार्य सुभाष चंद्र झा की अध्यक्षता व संस्कृति मिथिला के कोषाध्यक्ष व मैथिली के प्राध्यापक मदन मोहन ठाकुर के संयोजन में आयोजित पुष्पांजलि समारोह को संबोधित करते विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि चार दशक से भी कम के जीवन काल में राजकमल ने साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट सृजन कर राष्ट्रीय स्तर पर अपना कीर्तिमान स्थापित किया. राष्ट्र भाषा हिंदी व मातृभाषा मैथिली में समाज में व्याप्त कुरीतियों व सामंती प्रवृत्ति पर जमकर प्रहार किया. अपनी बेबाक लेखनी को लेकर तत्कालीन साहित्य समाज में उनकी आलोचना भी हुई. लेकिन आज के परिवेश में उनकी लेखनी प्रासंगिक बनी है. कलकत्ता प्रवास के दौरान इन्होंने बंगला साहित्य में भी कई महत्वपूर्ण आलेख का प्रकाशन कराया व बहुमुखी प्रतिभा का लोहा मनवाया. मछली मरी हुई, शहर था शहर नहीं था, ताश के पत्तों का शहर, दाह संस्कार के बाद देह शुद्धि, आंदोलन, ऑडिट रिपोर्ट सहित कई पुस्तकें इनके उत्कृष्ट लेखन को दर्शाता है. संगोष्ठी को प्रोफेसर रंजीत राय, प्रो लोचन मिश्र, प्रो अशोक राय, प्रो नरेंद्र खां, दिलीप दत्त सहित अन्य ने संबोधित करते स्व राजकमल के कृतित्व व व्यक्तित्व को महान बताते आचरण को अनुकरणीय व आत्मसात करने की बात कही. मौके पर कार्यालय कर्मी कुमार ओकेश, रामनरेश चौपाल, मनीषा कुमारी, राधेश्याम पासवान, कलानंद पासवान, कारी पासवान सहित अन्य मौजूद थे.
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