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नया बाजार में स्थापित वैष्णवी काली मंदिर आस्था का है बड़ा केंद्र

नया बाजार में स्थापित वैष्णवी काली मंदिर आस्था का है बड़ा केंद्र

लोगों की मुरादें मां करती है पूर्ण सहरसा . नया बाजार में 1970 में स्थापित वैष्णवी काली मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है. स्थापित प्रतिमा की पूजा के लिए प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. खासकर काली पूजा के अवसर पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. स्थानीय लोगों की मानें तो माता के दरबार में अर्जी लगाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है. जिससे लोगों की आस्था का यह बड़ा केंद्र बन गया है. स्थापना काल में एक छोटे से कमरे में पूजा स्थल बनाया गया था. जिसे अब वृहत रूप देते भव्य मंदिर तैयार किया गया है. मंदिर निर्माण कार्य अंतिम चरण में है. अब यहां बडी भव्यता के साथ काली पूजा का आयोजन होता है. स्थानीय लोगों के अनुसार नया बाजार निवासी स्व चंदू सिंह मां काली के सच्चे उपासक थे व नया बाजार में आदर से देखे जाते थे. जिस स्थान पर आज मां काली का मंदिर बना है, वह पहले एक निर्जन स्थल था. इस स्थान पर शवों का दाह संस्कार होता था. यह जगह किसी के भी रुकने या जाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था. अक्सर देर संध्या यहां पायल की आवाजें सुनाई देती थीं एवं लोग अज्ञात भय से डरते हुए वहां से गुजरते थे. खासकर यह रास्ता सदर अस्पताल को भी जोड़ता था. लोग जब मजबूरी में वहां से गुजरते तो ईश्वर का नाम लेते डर को शांत करने की कोशिश करते थे. एक दिन इस विचित्र घटना की बात स्वर्गीय चंदू सिंह के कानों तक पहुंची. उनकी जिज्ञासा जागी एवं एक संकल्प लेकर उन्होंने उसी रात उस स्थान पर जाने का निश्चय किया. अंधेरी रात में वह हिम्मत के साथ वहां पहुंचे. जैसे ही वे उस स्थल के निकट पहुंचे, उन्हें एक रहस्यमयी अनुभूति हुई. उनके भीतर एक असामान्य ऊर्जा का प्रवाह महसूस हुआ. उन्होंने समझा कि यहां कोई शक्ति अवश्य है, जो खुद को प्रकट करना चाहती है. अगले कुछ दिनों तक ध्यान एवं साधना करते हुए उन्होंने निर्णय लिया कि इस शक्ति का सम्मान करते हुए यहां मां काली की मूर्ति स्थापित की जानी चाहिए. अपने मन में यह विचार लेकर उन्होंने वहां एक मंदिर की स्थापना का कार्य आरंभ कर दिया. धीरे-धीरे नया बाजार के लोग भी उनके इस निर्णय के साथ जुड़ते गये एवं सामूहिक प्रयास से वहां मां काली की मूर्ति स्थापित की गयी. मंदिर बनने के बाद से वह स्थान पवित्र एवं सुरक्षित महसूस होने लगा. लोगों में जो भय था, वह श्रद्धा में बदल गया. मंदिर के निर्माण में स्व चंदू सिंह के साथ अन्य कई आस्थावान व्यक्तित्वों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया. जिनमें राम प्रसाद चौधरी, रामदेव महतो, सीताराम साह, सीताराम सिंह, स्व नंद किशोर सिंह, स्व लखन चौधरी, स्व कलिकानंद साह, स्व कुसुम प्रसाद सिन्हा, स्व जगत नारायण लाल दास, स्व चंद्रिका प्रसाद सिंह, वीरेंद्र प्रसाद सिंह, शशिधर चौधरी, शैलेंद्र कुमार सिंह पुरो सिंह, स्व बिंदेश्वरी सिंह, दिवाकर सिंह, स्व गणेश चौधरी, राज सिंह उर्फ राज बाबू, घनश्याम चौधरी ने अहम योगदान दिया. वर्तमान में राधे चौधरी के नेतृत्व में मंदिर के रखरखाव और विस्तार का कार्य हो रहा है. इस वर्ष 54वें काली पूजा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें मेला कमेटी अध्य्क्ष हन्नी चौधरी व कौशल क्रांतिकारी सचिव के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. यहां 31 अक्तूबर की मध्य रात्रि मां काली का जन्मोत्सव, एक नवंबर को सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं तीन नवंबर को मूर्ति विसर्जन की जायेगी.

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