Sahitya Akademi Award: साहित्य अकादमी ने 20 भाषाओं में अपने वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा की. इसमें बिहार के दो लोगों को पुरस्कार मिला है. मुजफ्फरपुर की अनामिका और मधुबनी निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार कमलकांत झा को वर्ष 2020 के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है. अनामिका को यह सम्मान उनकी हिंदी कविता संग्रह टोकरी में दिगंत : थेरीगाथा के लिए दिया गया है.
हिंदी में कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली ये देश की पहली महिला साहित्यकार हैं. मुजफ्फरपुर में जन्मी और पली-बढ़ी अनामिका को साहित्य का सर्वोच्च सम्मान दिया जाना शहर सहित पूरे प्रदेश के लिए गौरव की बात है. ये दिनकर और अरुण कमल के बाद बिहार की तीसरी साहित्ण्यकार हैं जिन्हें हिंदी के लिए साहित्य अकादमी मिला है. हिंदी कविता में योगदान के लिए अनामिका को राजभाषा परिषद् पुरस्कार, साहित्य सम्मान, भारत भूषण अग्रवाल व केदार सम्मान मिल चुके हैं.
अनामिका का जन्म 17 अगस्त 1961 को मुजफ्फरपुर में हुआ था. इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए, डी.लिट और पीएच-डी किया. ये फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में अंगेजी की प्राध्यापिका हैं. अनामिका ने कविता के साथ उपन्यास व कहानियां भी लिखी हैं. इन्हें साहित्य का संस्कार परिवार से मिला था.
इनके पिता डॉ. श्यामनंदन किशोर राष्ट्रकवि दिनकर की पीढ़ी के गीतकार थे. वे बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे. अनामिका का हरिसभा चौक के पास रज्जू साह लेन में पैतृक आवास भी है. इनके सम्मान पर शहर के साहित्यकारों ने खुशी जताई है.
मधुबनी निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार कमलकांत झा को साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिये चयनित किया गया है. इनकों इनके प्रसिद्ध पुस्तक ”गाछ रूसल अछि ” के लिये यह पुरस्कार मिला है. कमलकांत झा को इस पुरस्कार की घोषणा होते ही जिले भर के साहित्यप्रेमियों में खुशी की लहर है. कमलकांत झा को बधाई देने का दौर जारी है.
जयनगर सुभाष चौक स्थित अपने आवास पर कमलकांत झा ने बताया कि इससे पूर्व 1965 में उनके द्वारा लिखी गयी नाटक ”घटकैती ” काफी लोकप्रिय हुआ था. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रकाशन के करीब दस साल तक गांव गांव में इसका मंचन किया गया. फिर भागलपुर विश्वविद्यालय में दस सालों तक इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया. धीरे धीरे यह आउट आफ मार्केट हो गया था. जिसे बाद में कहीं से पुस्तक मिलने पर उसका दुबारा मुद्रण कराया गया है. इसी प्रकार गाछ रूसल अछि भी काफी लोकप्रिय हुआ.
Posted By: utpal Kant