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लाल सिलेंडर बन रहा काली कमाई का जरिया

समस्तीपुर : दिखावटी अभियानों के बीच घरेलू गैस की कालाबाजारी संगठित उद्योग का रूप ले चुका है़ नीचे से ऊपर तक पनप चुका सिंडीकेट मोटा मुनाफा बटोर रहा है़ दुखद पहलू यह है कि अवैध धंधे को अॉक्सीजन वैध कनेक्शन धारक भी पहुंचा रहे हैं. सिलिंडर घरों की बजाय बाजारों में जाकर कहीं वाहनों में […]

समस्तीपुर : दिखावटी अभियानों के बीच घरेलू गैस की कालाबाजारी संगठित उद्योग का रूप ले चुका है़ नीचे से ऊपर तक पनप चुका सिंडीकेट मोटा मुनाफा बटोर रहा है़ दुखद पहलू यह है कि अवैध धंधे को अॉक्सीजन वैध कनेक्शन धारक भी पहुंचा रहे हैं.

सिलिंडर घरों की बजाय बाजारों में जाकर कहीं वाहनों में इस्तेमाल होने के लिए तो कहीं होटल व ढाबे वालों को बेचे जा रहे हैं. सरकार घरेलू गैस की कालाबाजारी रोकने के लिए अवैध कनेक्शन बंद करने की अच्छी योजना लेकर आयी. एक तो सब्सिडी खातों में जाने लगी़ दूसरे सभी कनेक्शन आधार से लिंक कर दिये गये. ऐसे कनेक्शनधारक जिनके यहां रसोई में गैस की खपत कम है, कालाबाजारी को बढ़ावा देते दिख रहे हैं. वे जरूरत नहीं होने पर भी साल में 12 सिलिंडर ले लेते हैं. इस तरह उन्हें सब्सिडी और धंधेबाजों को गैस मिल जाती है़
एक सिलिंडर पर 500 तक कमाई
घरेलू गैस सिलिंडर को ब्लैक करने पर बिचौलिये दो सौ से पांच सौ रुपये तक कमाते हैं. छोटे गैस सिलिंडरों में गैस 80 से 100 सौ रुपये किलो बिक्री की जाती है़ इससे सिलिंडर करीब 1200 रुपये का बिक जाता है, जबकि सब्सिडी सहित इसकी कीमत सात सौ रुपये के करीब है़ दूसरी ओर वाहन चालकों से करीब नौ सौ रुपये प्रति सिलिंडर वसूल किये जाते हैं. साथ ही एक किलो के करीब गैस चोरी भी कर ली जाती है़
शहर के कई क्षेत्र बने गैस रिफिलिंग का हब : शहर में गैस रिफलिंग के बड़े कारोबार की जड़ें छोटी दुकानों में गहरी हैं. चाय की दुकान से लेकर होटलों तक गैस रिफिलिंग के सिलिंडरों की खपत जमकर की जाती है़ शहर में दो दर्जन से अधिक ऐसी सड़कें हैं जहां पर छोटे दुकानदार गैस रिफलिंग का व्यवसाय करते हैं. शहर के आजाद चौक, ताजपुर रोड, काशीपुर चौक, रामबाबू चौक पर खुलेआम गैस रिफलिंग का कारोबार चल रहा है़
गैस की कालाबाजारी ले चुकी है शहर में संगठित उद्योग का रूप
प्रशासन पर टिकीं निगाहें
इस कारोबार पर नकेल लगाये जाने को लेकर संबंधित विभाग के पदाधिकारी पर नजरें आ टिकी है. वैसे जमीनी स्तर पर उनकी ओर से कोई कार्रवाई होता हुआ दिख नहीं रहा है. लोगों का कहना है कि पदाधिकारी थोड़ा सक्रिय होते तो इस पर आसानी से अंकुश लगाया जा सकता है.

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