पूसा : डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. विनोद कुमार ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि कम वर्षा को देखते हुए किसानों के माध्यम से जल संचय करना किसान व कृषिहित में सर्वोत्तम माना गया है. जल प्रबंधन के महत्वपूर्ण विंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भूमि के बाद जल कृषि उत्पादन के लिए प्रमुख कारक है. मुख्य तौर पर जल के तीन प्रमुख श्रोत हुआ करते हैं.
जिसमें जरूरत के अनुसार वर्षा जल, भू-जल के अलावे नदी, तालाब, नहर से प्राप्त होने वाले जल में वर्षा जल अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं. शुद्धता का प्रतीक होते हुए वर्षा जल सभी तरह के सामाजिक व राजनीतिक बंधन से मुक्त होता है. किसानों को सर्वप्रथम वर्षा जल का संचयन व संरक्षण करना चाहिए. इसके लिए प्रमुख तकनीक पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समतल भूमि में नाली व मेड़ बनाकर संचय किया जा सकता है. खेतों में वृक्ष रहना भी आवश्यक है ताकि वर्षा की बूंद धीमी गति से गिरती रहे.
वृक्ष की जड़ें पानी को अपने में समाहित कर संचय की प्रक्रि या को बढाती है. खेत की मृदा में जैविक खाद पर्याप्त मात्र में हो ताकि भूमि की जलधारण क्षमता बढ सके. भूमि को ढक कर रखने से भी जल के वाष्पीकरण की हानि काफी कम की जा सकती है. विशेष रूप से पलवार व शश्य वानिकी इसके लिए उपयोगी है. जल के उचित उपयोग के लिए फसल के क्र ांतिक वृद्धि अवस्था में पानी देना चाहिए. इसके साथ ही फसल चक्र इस प्रकार की होनी चाहिए. आधी फसल अधिक जल चाहने वाली एवं आधी कम जल चाहने वाली हो. समय पर निकाई गुराई करने से भूमि की पपरी टूट जाती है और खरपतवार भी निकल जाता है. इससे काफी मात्र में जल की हानि को रोका जा सकता है. मौके पर उतरी बिहार के भिन्न भिन्न जिले के किसान मौजूद थे.