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BIHAR : शराबबंदी के बाद जीवन की गाड़ी चल रही बिना रिस्क के…पढ़ें

19 फरवरी, 2011 को समस्तीपुर शहर की दलित बस्ती में जहरीली शराब से एक दर्जन से अधिक की हुई थी मौत प्रकाश कुमार समस्तीपुर : ‘‘सारा शहर बुहारा करते, अपना ही घर गंदा रखते, शिक्षा से रहते कोसों दूर, दारु पीते रहते चूर, बोतल महंगी तो क्या है, देसी थैली सस्ती है, यह दलितों की […]

19 फरवरी, 2011 को समस्तीपुर शहर की दलित बस्ती में जहरीली शराब से एक दर्जन से अधिक की हुई थी मौत
प्रकाश कुमार
समस्तीपुर : ‘‘सारा शहर बुहारा करते, अपना ही घर गंदा रखते, शिक्षा से रहते कोसों दूर, दारु पीते रहते चूर, बोतल महंगी तो क्या है, देसी थैली सस्ती है, यह दलितों की बस्ती है़ ’’ सूरजपाल चौहान की ये पंक्तियां समस्तीपुर शहर की काशीपुर मस्जिद गली स्थित दलित बस्ती पर कभी चरितार्थ होती थीं.
छह वर्ष पहले 19 फरवरी, 2011 को यहां जहरीली शराब पीने से एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी. यह इलाका न केवल सामाजिक, बल्कि शैक्षणिक व आर्थिक स्तर पर भी काफी पिछड़ा हुआ था़ मोहल्ले में दलित समुदाय से जुड़ा हुआ शायद ही कोई परिवार है, जिसके किसी-न-किसी सदस्य की जान शराब की लत ने न ली हो.
लेकिन, क्रांतिकारी परिवर्तन आया पांच अप्रैल, 2015 को, जिस दिन पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की गयी थी. उस शाम मोहल्ले के ही कुछ बुद्धिजीवियों ने एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगा कर और मिठाई खिला कर राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत किया था़ राज्य सरकार के एक फैसले ने यहां लोगों की जिंदगी बदल दी. पूर्ण शराबबंदी के करीब 17 महीने की अवधि में न केवल लोगों के सामाजिक स्तर में बदलाव आया है, बल्कि उनके स्वास्थ्य, शिक्षा व आर्थिक स्तर में भी इजाफा हुआ है. काशीपुर मोहल्ले के मुकेश कुमार साह शराब के काले कारोबार से जुड़े थे. मुकेश बताते हैं कि पांच अप्रैल, 2015 के बाद जब शराबबंदी कानून लागू हुआ और मुझे लगा कि अब इस धंधे को छोड़ना ही बेहतर है.
मैं मोहल्ले के ही कुछ राजमिस्त्री के साथ सहायक का काम करने लगा. मकान पेंटिंग से लेकर उन सभी कामों को तुरंत सीख गया, जो मकान निर्माण के लिए जरूरी है़ यही कारण है कि मैंने अपना घर भी खुद से ही बना लिया. आज मुकेश इन कामों के साथ घर पर ही एक छोटी-सी किराना की दुकान भी चला रहे हैं. इन सभी कामों की बदौलत मुकेश के जीवन की गाड़ी बिना किसी ‘रिस्क’ के शांति से चल रही है.
बड़े बदलाव से प्रफुल्लित
कहते हैं कि नशे की लत एक बार जिसे लग जाये, उम्र भर नहीं छूटती. मगर, यहां दर्जन भर ऐसे लोग हैं, जिन्होंने इस बात को झुठला कर मिसाल पेश की है. सात सालों तक शराब पीने के बाद अब एक बूंद भी शराब हाथ नहीं लगाते. इस बदलाव से वे खुद तो प्रफुल्लित हैं ही, उनके परिवार की माली हालत भी लगातार सुधर रही है. जो हितैषी-रिश्तेदार पहले कतराते थे, अब वे इन्हें सम्मान देने लगे हैं. अब यह सब अपनों के बीच उदाहरण बन गये हैं.
रिश्तेदार पहले कतराते थे, अब देते हैं सम्मान
बदल गया नजरिया
गोविंद हो या बलराम, जबसे इन्होंने नशा छोड़ा, तब से इनका नजरिया ही बदल गया. कहते हैं, पहले शराब के लिए पैसे जुटाने में दिमाग लगाते थे, अब परिवार के बारे में न िसर्फ सोचते हैं.
गोविंद इकलौते बच्चे को पढ़ाने में लगा है, तो बलराम भी चार बेटों को अच्छा इनसान बनाना चाहता है. बलराम की पत्नी प्रेमा कहती हैं कि जब से इन्होंने शराब छोड़ी, तब से बच्चों के लिए कुछ-न-कुछ जरूर लेकर आते हैं. मेरे लिए भी साड़ी व अन्य चीजें लाने लगे हैं.
आर्थिक रूप से बन रहे सबल
जिस मोहल्ले में सुबह उठने के बाद ‘चाय दुकान’ पर मारपीट व घरेलू हिंसा की खबरें सुनने को मिलती थीं, आज उस जगह देश-िवदेश की खबरों पर चर्चा होती है़ माहौल सुधरने के कारण कोचिंग सेंटर व अस्पताल भी खुले हैं. बाहर से आये लोग यहां किरायेदार के रूप में रहने लगे हैं. इस दलित बस्ती के युवा अब झाड़ू निर्माण, डीटीएच, बिजली वायरिंग, प्लम्बिंग, राजमिस्त्री, बढ़ईगीरी आदि का कार्य कर न केवल अपने इलाके का नाम रोशन कर रहे हैं, बल्कि अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को भी सुधार रहे हैं.

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