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भूमि को ले रक्तरंजित हो रही जमीन

समस्तीपुर : ‘लियो आल्स्टाय’ की कहानी ‘कितनी जमीन’ के पात्र ‘दीना’ के भूमि की चाहत और उसके अंत के बाद जमीन की आवश्यकता को एक वाक्य में रेखांकित कर दिया गया है. इस कहानी से महात्मा गांधी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका अनुवाद गुजराती में किया था और इसकी प्रतियां पाठकों में वितरित करायी […]

समस्तीपुर : ‘लियो आल्स्टाय’ की कहानी ‘कितनी जमीन’ के पात्र ‘दीना’ के भूमि की चाहत और उसके अंत के बाद जमीन की आवश्यकता को एक वाक्य में रेखांकित कर दिया गया है. इस कहानी से महात्मा गांधी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका अनुवाद गुजराती में किया था और इसकी प्रतियां पाठकों में वितरित करायी थी.
गांधीजी के अपरिग्रह सिद्धान्त का इस कहानी में बड़े मार्मिक ढंग प्रतिपादन हुआ है. विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में लोग आगे आकर जमीन दान दिये थे. लेकिन समय के साथ मनुष्य में निजता की चाहत इतनी तेजी से बढ़ी कि वस्तु के आगे इनसान बौना नजर आने लगा है.
बास की बात तो दूर अब राह तक के लिए अड़ंगे खड़े हो रहे हैं. बीते 6 महीने में हुई भूमि विवाद पर नजर डालें तो कई ऐसे मामले ही सामने आये हैं जिसमें लोग थोड़ी सी जमीन के लिए जान लेने देने पर उतारू हुए. कई लोगों की जानें चली गयी. लेकिन जमीन वहीं पड़ी रही. ऐसे में लियो आल्स्टाय की कथा का सार समझने की जरूरत है जो किसी वस्तु की उतनी ही चाहत की ओर इशारा करता है जितने की इनसान को जरूरत हो.

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