मम्मी गे, हम घर में नै सुतबौ…
समस्तीपुर. धरती क्या हिली लोगों के जीवन का अस्तित्व ही डोल गया. दहशत सब पर हावी. दिन भर रुक रुक झटके आते रहे जिसे लोग सह रहे थे. लेकिन जैसे ही शाम ढलनी शुरू हुई मन में एक खौफ समा गया. बड़े ने हिम्मत कर घर के अंदर बिस्तर पर करवट ले ली लेकिन 11 […]
समस्तीपुर. धरती क्या हिली लोगों के जीवन का अस्तित्व ही डोल गया. दहशत सब पर हावी. दिन भर रुक रुक झटके आते रहे जिसे लोग सह रहे थे. लेकिन जैसे ही शाम ढलनी शुरू हुई मन में एक खौफ समा गया. बड़े ने हिम्मत कर घर के अंदर बिस्तर पर करवट ले ली लेकिन 11 वर्षीय संभव का चेहरा बता रहा था कि वह अंदर से सहमा हुआ है. चौथी कक्षा में पढने वाले बच्चे की नजर छत से लट रही पंखे पर टिकी थी. रात के करीब 10 बजे होंगे. भूकंप पर चर्चा हो ही रही थी कि उसके मुंह से चीख निकल गयी. वह बिस्तर से यूं कूद गया जैसे प्राण संकट में. चिल्लाता हुआ वह आंगन में पहुंच कर बैठ गया. पीछे से दौड़ी उसकी मां ने उसे आंचल में समेट कर पूछा तो उसने साफ जवाब दिया घर के अंदर नै सुतबौ. मां उसे समझाने की चेष्टा कर रही थी लेकिन वह मकान को यूं झांक रहा था जैसे वह टूट कर उसी के ऊपर आ गिरेगी. समझाने की चेष्टा पर उसने कहा कि डर लग रहा है. पास पहुंच कर पिता ने समझा तो वह थोड़ा शांत हुआ. चापाकल पर हाथ मुंह धुला कर पिता ने उसे अपने ही पास देहरी पर लिटा लिया तो उसने कुछ देर बाद आंखें मूंद ली. लेकिन रह रह कर वह चौंक कर उठ रहा था. आंखों ही आंखों में रात कट गयी. सुबह उसके जान में जान लौटा. लेकिन जैसे ही दिन के करीब पौने एक बजे भूकंप का झटका आया एक बार फिर वह दहशत में आ गया. वह बार बार अपनी मां से इतना पूछ रहा है कि ऐसा कब तक होगा. लेकिन उसे कौन समझाये कि यह आदमी के वश में नहीं है जिसके वश में है अब वह तो कुछ बोलता नहीं बस करता है.