पिंडदान में उम्र नहीं रिश्तों का फजर्

अजय पांडेय, गया . जीवन व मरण एक रहस्य है, जिसे हर कोई अपने अनुसार समझने की कोशिश करता है. इस कोशिश में उसे उम्र के कई पड़ावों से होकर गुजरना पड़ता है, क्योंकि जीवन व मरण के दर्शन में न तो मौत की उम्र निर्धारित है, न ही जीवन की. ऐसे में उम्र के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2013 10:35 PM

अजय पांडेय, गया . जीवन व मरण एक रहस्य है, जिसे हर कोई अपने अनुसार समझने की कोशिश करता है. इस कोशिश में उसे उम्र के कई पड़ावों से होकर गुजरना पड़ता है, क्योंकि जीवन व मरण के दर्शन में न तो मौत की उम्र निर्धारित है, न ही जीवन की. ऐसे में उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपनों का साथ छूट जाना व उसके बिना आगे का रास्ता तय करना दुष्कर हो जाता है. लेकिन, मनुष्य अपनी जिजीविषा से हर परिस्थितियों से पार पा लेता है. पितृपक्ष में मृत्यु के अलौकिक दर्शन को चाहे जैसे समझा जाये, लेकिन उसकी लौकिक व्याख्या भावुक व द्रवित करती है. यह संयोग ही है कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर से आये 90 वर्षीय प्रभुलाल अपने बेटे, बहू व पोते का पिंडदान करने गया आये हैं, तो मध्य प्रदेश के ही धार से महज ढाई वर्ष का कुणाल अपने दादा का पिंडदान करने आया है. ये दोनों उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहां उन्हें एक सहारे की जरूरत है. रिश्तों की पृष्ठभूमि में दादा-पोते का रिश्ता काफी करीब का होता है. लेकिन, 90 वर्षीय प्रभुलाल की मन:स्थिति पर क्या गुजर रही होगी, जो बोङिाल व झुके कंधों पर अपने बेटे व पोते की मौत का दु:ख ढो रहे हैं. बातचीत के क्रम में कई बार वह भावुक हो जाते हैं और बरबस उनकी आंखों से आंसू निकल आते हैं. पास में बैठी हुई उनकी पत्नी जरूर दिलासा देती है, लेकिन अपने पीछे किसी और का सहारा न पाकर खुद रोने लगती हैं. इधर, ढाई वर्ष के कुणाल ने अपने दादा को देखा भी नहीं है, लेकिन पोते का फर्ज निभाने अपने पिता के साथ गया आया है. वह पिंडदान तो क्या, मृत्यु को भी ठीक से नहीं समझता. उसके पिता सुनील उसे दादाजी से मिलाने का वादा कर यहां लाये हैं. वह पिंडवेदी पर बैठा है, लेकिन उसकी निगाहें दादाजी को ढूंढ़ रही हैं. वह बार-बार अपने पिता से पूछता है, कहां हैं दादाजी? उनको फोन करो जल्दी आएं.

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