23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान

समस्तीपुर : प्राचीन भारतीय इतिहास कहता है कि तब आश्रमों में गुरु और शिष्य परंपरा थी. उस युग में गुरु शिष्य को ढूंढ़कर लाते थे. उन्हें योग्य बनाकर समाज के सामने प्रस्तुत करते थे. इसके लिए वह हर उस सुख सुविधा का त्याग कर देते थे, जो उन्हें समाज से सहज प्राप्त हो सकता था. […]

समस्तीपुर : प्राचीन भारतीय इतिहास कहता है कि तब आश्रमों में गुरु और शिष्य परंपरा थी. उस युग में गुरु शिष्य को ढूंढ़कर लाते थे. उन्हें योग्य बनाकर समाज के सामने प्रस्तुत करते थे. इसके लिए वह हर उस सुख सुविधा का त्याग कर देते थे, जो उन्हें समाज से सहज प्राप्त हो सकता था. गुरुओं का यह उत्सर्ग शिष्यों के माध्यम से समाज और राष्ट्र के लिए होता था.
यही वजह है कि प्राचीन भारतीय चिंतकों ने गुरु का स्थान काफी ऊंचा दिया है. ‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांव, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताये’ कह कर कबीर ने तो गुरु की वंदना को ज्यादा महत्व देकर उन्हें ईश्वर से भी उंचा स्थान दिया है. गुरुओं के इस त्याग से अभिभूत होकर समाज को नयी दिशा देने में उनकी भूमिका बनाये रखने के लिए तत्कालीन समाज ने उन्हें सम्मानित करने के लिए आषाढ़ पूर्णिमा चुना है. यह दिन वेद के रुप में हमें ज्ञान देने वाले व्यास जो आदि गुरु भी हैं उनका जन्म दिवस है.
धीरे-धीरे यह दिवस गुरु पूर्णिमा के रुप में प्रसिद्ध हो गया. लेकिन बदलते जमाने में यह अब परंपरा मात्र बन कर रह गयी है. अब न तो सब गुरु द्यौम्य होते और न ही सभी शिष्य उनके भक्त अरुणि की तरह बन पा रहे हैं. जिसे एक बार फिर से पुनस्र्थापित करने की आवश्यकता है. इसके लिए समाज को आगे आना होगा.
गुरुओं के सुविचार
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के सेवानिवृत्त प्रोफेसर शिवाकांत पाठक का कहना है कि, वर्तमान में मावन समुदाय दीन दुखी बना हुआ है. कारण उचित मार्गदर्शन का अभाव है. यदि मिलता भी है तो उस गुरु की वाणी पर शायद सत्यनिष्ठा का अभाव होता है. इसके कारण उनकी वाणी का असर शिष्यों पर नहीं होता.
नतीजा गुरु नियम के काल में बंधी अवधि को पार कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर जाते हैं. जिसके कारण बच्चों को जीवन का वह शिखर प्राप्त नहीं हो पा रहा है जिसका वह असली हकदार होता है. कबीर ने स्पष्ट कहा है कि ‘कबिरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और. हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहि ठौर.’
समस्तीपुर कॉलेज के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रभात कुमार का कहना है कि, दुनिया के सभी महान व्यक्ति गुरुओं के आशीर्वाद से ही महान बने हैं. मानव जीवन और अच्छे गुरु की प्राप्ति सबसे बड़ी उपलिब्ध है. गुरु के लिए कुछ भी अदेय नहीं होता. कहा भी गया है ‘यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान. शीश दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान.’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें