नगर परिषद उपाध्यक्ष की कुर्सी पर लटकी तलवार
समस्तीपुर : लोकतंत्र में गद्दी को लेकर सियासत आम है. नगर परिषद भी इससे अछूता नहीं है. पिछले दो वर्षों से नगर परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर जो सियासी उठा पटक चल रही है, उसकी तसवीर यही बयां कर रही है. करीब एक वर्ष पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष अर्चना कुमारी पर लगा […]
समस्तीपुर : लोकतंत्र में गद्दी को लेकर सियासत आम है. नगर परिषद भी इससे अछूता नहीं है. पिछले दो वर्षों से नगर परिषद अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर जो सियासी उठा पटक चल रही है, उसकी तसवीर यही बयां कर रही है. करीब एक वर्ष पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष अर्चना कुमारी पर लगा अविश्वास,
इसके तुरंत बाद उपाध्यक्ष सुजय कुमार पर सदस्यों ने अविश्वास जता दिया. जिसके बाद दो खेमों में बंटी नगर परिषद की सियासत और कुर्सी विरोधी खेमे की ओर खिसकती नजर आयी. लेकिन आपात बैठक में चर्चा से पूर्व नप उपाध्यक्ष की ओर से त्याग पत्र ने राजनीतिक हलकों में हैरत का माहौल कायम कर दिया.
नतीजा चर्चा और मतदान टल गया. नप अध्यक्ष की कुर्सी भी बच गयी थी. ठीक इसके बाद नप उपाध्यक्ष ने अपना त्याग पत्र वापस लेकर विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिया. हालांकि विरोधी खेमा नप उपाध्यक्ष के त्याग पत्र वापसी को गैर संवैधानिक मानते हुए आपत्ति दर्ज करायी थी. इसके साथ ही पर्दे के पीछे दोबारा अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पटकथा तैयार होने लगी. इसमें टेंडर प्रक्रिया ने घी का काम किया.
जिसने विरोधी खेमे में शामिल नगर परिषद सदस्यों को मौका दे दिया. जैसे ही समय पूरा हुआ 29 पार्षदों वाले नगर परिषद के 13 सदस्यों ने नप उपाध्यक्ष सुजय कुमार के विरुद्ध अविश्वास जताते हुए आवेदन की प्रति कार्यपालक पदाधिकारी देवेंद्र सुमन और फिर नगर परिषद अध्यक्ष अर्चना देवी के हाथ सौंप कर नगर परिषद की ठंडी पड़ी सियासत में फिर से गरमाहट ला दिया है.
नप उपाध्यक्ष श्री कुमार कहते हैं कि जब से टेंडर की प्रक्रिया का विरोध किया तब से कुछ पार्षदों की भृकुटि तनी हुई है. जब पार्षदों द्वारा खुद टेंडर गिराने से संबंधित सीडी भेज कर विभाग के प्रधान सचिव से शिकायत की गयी तो अविश्वास का खेल शुरू कर उस पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है. इधर,
अविश्वास प्रस्ताव का नेतृत्व कर रहे पार्षद राजीव रंजन सिंह का कहना है कि उपमुख्य पार्षद के द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए विकास कार्यों में गड़बड़ी की गयी है. जब तक वे पद से च्यूत नहीं होते तब तक निष्पक्ष जांच की कल्पना नहीं की जा सकती है.