समस्तीपुर : प्रशासनिक निगरानी के अभाव में आम उपभोक्ता घटतौल के शिकार हो रहे हैं. खास कर दुकानों में प्रयोग में लाये जा रहे मापक बाट निर्दिष्ट वजन पर खड़ा नहीं उतर रहा है और ग्राहकों को ठगी का शिकार होना पड़ रहा है. आम तौर पर खरीदारी के लिए पहुंचने वाले ग्राहक तराजू पर चढ़ाए गये बाट को देख कर संतुष्ट हो जाते हैं जबकि वजन के हिसाब से चुकाए गये मूल्य के समानांतर उन्हें सामग्री नहीं मिल पा रही है.
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नकली सामग्री से पटा बाजार ऊपर से घटतौल का शिकार
समस्तीपुर : प्रशासनिक निगरानी के अभाव में आम उपभोक्ता घटतौल के शिकार हो रहे हैं. खास कर दुकानों में प्रयोग में लाये जा रहे मापक बाट निर्दिष्ट वजन पर खड़ा नहीं उतर रहा है और ग्राहकों को ठगी का शिकार होना पड़ रहा है. आम तौर पर खरीदारी के लिए पहुंचने वाले ग्राहक तराजू पर […]
बाजार के विविध दुकानों के बाट का निरंतर निगरानी नहीं हो पाने का खामियाजा है कि अधिकांश व्यवसायी वर्षों पुराने बाट का उपयोग करते आ रहे हैं. ज्यादा हूल हुज्जत करने पर ग्राहक को बाट पर आइएसआइ मार्का दिखा कर संतुष्ट हो जाने के लिए बाध्य किया जाता है और अधिक बातें बनाने पर अन्य दुकानों से सामान खरीद करने की सलाह देकर पल्ला झाड़ लिया जाता है.
एक तो बाजार में नकली सामग्री की भरमार,ऊपर से घटतौल ने इस महंगाई में आम उपभोक्ताओं को जैसे तैसे जीवन यापन करते रहने की नियति दे रखी है. आम तौर पर ऐसा देखा जाता रहा है कि संबंधित विभाग के द्वारा नहीं के बराबर छापेमारी की जाती है और यदि गाहे बगाहे निरीक्षण भी होता है तो सब कुछ आसानी से निबट जाता है.
बाजार की कौन कहे अब तो जविप्र दुकानों पर भी इस प्रकार के बाट का प्रचलन जोरों पर है. मसला पर गौर करें तो जग जाहिर हो चुकी है कि नियामक के अनुरूप जविप्र दुकानों पर उपभोक्ताओं को सामग्री नहीं मिल पाती. सरकार के लाख पारिदर्शता बरतने की कवायद यहां सिर्फ कागजों पर निबट रहा है. जब बीपीएल के तहत उपभोक्ताओं को 15 और 10 किलो खाद्यान्न मिलने का प्रावधान था तो उन्हें 14 और नौ किलो से संतोष करना पड़ा.
वर्तमान हाल है कि खाद्य सुरक्षा गारंटी के तहत पांच किलो के बदले चार किलो प्रति युनिट खाद्यान्न से ही संतुष्ट होना पड़ रहा है. किरासन के पौने तीन लीटर की जगह ढाई लीटर तेल का वितरण परंपरा बन चुकी है. ऐसे में यदि बाट के वजन में भी हेराफेरी होती है तो फिर उपभोक्ताओं की दशा का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. हालात विकट हैं. एक तो दुकानों में बिक रहे सामग्री की निगरानी नहीं हो पा रही और ऊपर से सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधा में कटौती किया जा सकता है.
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