समस्तीपुर में दवा कारोबारी बनकर रह रहा था भास्कर
पूछताछ के बाद पत्नी को छोड़ा पुलिस ने पूछताछ के बाद भास्कर की पत्नी को छोड़ दिया है. उसका नाम गिरफ्तार या हिरासत में लिये गये लोगों की लिस्ट में नहीं है. पुलिस ये भी नहीं कर रही है कि भास्कर की पत्नी से उसने पूछताछ की है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि भास्कर […]
पूछताछ के बाद पत्नी को छोड़ा
पुलिस ने पूछताछ के बाद भास्कर की पत्नी को छोड़ दिया है. उसका नाम गिरफ्तार या हिरासत में लिये गये लोगों की लिस्ट में नहीं है. पुलिस ये भी नहीं कर रही है कि भास्कर की पत्नी से उसने पूछताछ की है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि भास्कर की पत्नी से पूछताछ में कुछ भी सामने नहीं आया. किसी भी मामले में उसकी संलिप्तता नहीं पायी गयी. इसी के आधार पर उसे छोड़ा गया है.
समस्तीपुर : काशीपुर मोहल्ले से गिरफ्तार माओवादी जोनल कमांडर लालबाबू सहनी उर्फ भास्कर दवा का कारोबारी बन कर रह रहा था. इसी की आड़ में माओवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था.
वो लगभग एक साल से मोहल्ले में किराये के मकान में रह रहा था, लेकिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी थी. उसके साथ पत्नी भी रह रही थी. वो मोहल्ले में कम लोगों से मिलता था. उसके यहां बाहर के लोगों का आना-जाना था, लेकिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी कि वो मोस्ट वांडेट माओवादी है.
अन्वेषण ब्यूरो के पास घर
भास्कर की गिरफ्तारी ने अपराध अन्वेषण ब्यूरो के काम पर भी सवालिया निशान लग गया है, क्योंकि जिस जगह पर ब्यूरो का ऑफिस है, उससे चंद कदम की दूरी पर ही भास्कर किराये के मकान में रह रहा था. जानकारों की मानें, तो वैशाली के तत्कालीन एसपी के आवास पर लेवी से संबंधित पोस्टर लगाने में भास्कर अहम भूमिका निभायी थी. एक व्यवसायी से लेवी मांगने के कारण लालबाबू का मोबाइल नंबर पुलिस को हाथ लगा. इसे सर्विलांस पर डाला गया, तो उसका लोकेशन काशीपुर में मिला. इसी के आधार पर उसकी गिरफ्तारी हुई.
रिपोर्ट पर नहीं हुआ काम
माओवादियों के लिए सेफजोन माने जाने वाले समस्तीपुर में पुलिस के पास इनसे निबटने के लिए कोई ठोस ब्लू प्रिंट नहीं है. इस कारण नक्सलियों के जिले में आवागमन की जानकारी भी पुलिस को नहीं मिल पाती है. 2008 में इसको लेकर पहल हुई थी. उस समय एसपी सुरेंद्र लाल दास ने अपने पत्रंक 2575दिनांक तीन अप्रैल 08 के माध्यम से खानपुर, हथौड़ी, वारिसनगर, कल्याणपुर, वैनी, हलई समेत जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों में नक्सलियों की गतिविधियों व उनके स्थानीय को चिह्नित करने के लिये छद्म रूप से जांच करायी थी. इसके लिए तत्कालीन अवर निरीक्षक कन्हैया कुमार सिंह को खानपुर थाना में प्रतिनियुक्त किया गया था. करीब तीन महीने की गहन पड़ताल के बाद सदर डीएसपी के माध्यम से एसपी को रिपोर्ट सौंपी गयी. रिपोर्ट में कई सफेदपोशों व दबंगों का नाम आने के बाद उक्त पदाधिकारी का जिले से तबादला कर दिया गया,
लेकिन आठ साल बीतने के बाद भी रिपोर्ट में आयीं बातों पर न तो पुलिस के आलाधिकारियों ने संज्ञान लिया और न ही नक्सलियों के स्थानीय संरक्षकों पर कार्रवाई हुई.
18 वर्ष पहले सुनायी दी थी माओवादी धमक. लोग जिले में नक्सलियों की इंट्री को रामभ्रदपुर स्टेशन के समीप बम विस्फोट को मानते हो, लेकिन जानकार बताते हैं कि पहली बार जिले में माओवादियों की धमक 1998 में वारिसनगर में दिखी थी. यहां के डरसूर मठ की जमीन को लेकर विवाद में एक गुट ने नक्सलियों को पहली बार गांव में संरक्षण दिया.
इसके बाद नक्सली समस्तीपुर को सेफजोन के रूप में इस्तेमाल करने लगे. वारिसनगर, खानपुर, हथौड़ी व हलई ओपी क्षेत्र इनका मुख्य रूप से ठिकाना बनता चला गया, लेकिन भास्कर की गिरफ्तारी से शहर में नक्सलियों के होने की पुष्टि ने जहां पुलिस अधिकारियों के कान खड़े कर दिये हैं, वहीं आम लोगों में भी दहशत है.