दिव्यांग रीता का जज्बा दे रहा लोगों को हौसला

जीवेश मिश्र समस्तीपुर जिले के खानपुर प्रखंड के श्रीपुरगाहर पूर्वी पंचायत का बुधवाराही गांव में रहती हैं तीन बहनें. तीनों दिव्यांग. बूढ़ी मां अरहुला देवी और छोटा भाई भी हैं. पिता ठक्को मंडल मंडल की नौ साल पहले मौत हो गयी, लेकिन बड़ी बहन रीता (30) ने हिम्मत नहीं हारी. उसने अपनी जिंदगी को आगे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2016 8:13 AM

जीवेश मिश्र

समस्तीपुर जिले के खानपुर प्रखंड के श्रीपुरगाहर पूर्वी पंचायत का बुधवाराही गांव में रहती हैं तीन बहनें. तीनों दिव्यांग. बूढ़ी मां अरहुला देवी और छोटा भाई भी हैं. पिता ठक्को मंडल मंडल की नौ साल पहले मौत हो गयी, लेकिन बड़ी बहन रीता (30) ने हिम्मत नहीं हारी.

उसने अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने का फैसला किया. मां अरहुला देवी गांव के स्कूल में रसोइया थीं. उनकी कमाई से ही परिवार चलता था. पिता की मौत के बाद रीता ने मां का हाथ बंटाने का फैसला किया. उसने तीन महीने की सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग ली.

फिर कर्ज लेकर सिलाई मशीन खरीदी और घर चलाने में मां का हाथ बंटाने लगी. वह अच्छे कपड़े सिलती है. सिलाई से होनेवाली आमदनी से कर्ज भी चुका रही है. रीता ने चौथी के बाद पढ़ाई नहीं की, क्योंकि घर की माली हालत ठीक नहीं थी. हालांकि, सबसे छोटी बहन बबीता (18) को उसने आठवीं तक पढ़ाया है. बबीता आगे भी पढ़ना चाहती थी, लेकिन गांव में इससे आगे की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं है. भाई रमेश अभी काम नहीं कर पाता है.

16 साल बीते, नहीं मिली पेंशन

रीता कुमारी ने विकलांगता पेंशन के लिए सन 2000 में आवेदन दिया था, लेकिन अभी तक उसे पेंशन नहीं मिली. जब परिवार की माली हालत कुछ अच्छी हुई, तो पिछले छह माह से प्रखंड कार्यालय का चक्कर लगा रही है, लेकिन अभी तक उसकी पेंशन पास नहीं हो सकी है. वो किसी तरह से प्रखंड कार्यालय जाती है और सरकारी कर्मचारियों को फरियाद सुना कर वापस लौट आती है.

ट्राइसाइकिल से बदलेगी जिंदगी

रीता व उसकी बहनों की जिंदगी ट्राइ साइकिल से बदल सकती है. ये लोग भी चाहती हैं कि ट्राइ साइकिल मिले, तो ये आसानी से एक-दूसरी जगह जा सकती हैं, लेकिन परिवार की माली हालत ऐसी नहीं कि है कि साइकिल खरीद सकें. सरकार की ओर से ट्राइ साइकिल देने की योजना है, लेकिन इन्हें पेंशन तक नहीं मिली, तो ट्राइ साइकिल कैसे मिलेगी. अगर इन बहनों को ट्राइ साइकिल मिल जाये, तो छोटी बहन बबिता का आठवीं से आगे पढ़ने का सपना भी पूरा हो सकता है.

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