प्रबंधन सभी मजदूरों से बैंक खाते की कर रहे हैं मांग

अब तक आधे मजदूरों ने ही जमा किया है बैंक खाता अब तीन से चार सौ रुपये की दिनभर में होती है बिक्री प्रधान डाक घर के सामने ठेला पर लिट्टी-चोखा बेचता अमर सिंह. समस्तीपुर : नोटबंदी का असर कारोबार भी पड़ा है. चाहे वह छोटा कारोबार हो या बड़ा. सब पर कुछ न कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 21, 2016 4:18 AM

अब तक आधे मजदूरों ने ही जमा किया है बैंक खाता

अब तीन से चार सौ रुपये की दिनभर में होती है बिक्री
प्रधान डाक घर के सामने ठेला पर लिट्टी-चोखा बेचता अमर सिंह.
समस्तीपुर : नोटबंदी का असर कारोबार भी पड़ा है. चाहे वह छोटा कारोबार हो या बड़ा. सब पर कुछ न कुछ असर दिखा. कपड़े की दुकानों में बिक्री जहां ज्यादा प्रभावित रही, वहीं ज्वेलरी की बिक्री भी प्रभावित हुई. इलेक्ट्रॉनिक्स एवं गल्ला की बिक्री पर भी नोटबंदी का असर दिखा. इन सबसे से इतर ठेला पर लिट्टी चोखा बेचने वाले, सत्तू भूंजा बेचने वाले समेत चाय नाश्ता की दुकान वाले को भी नोटबंदी का असर दिखा. पुरानी पोस्ट आॅफिस रोड में लिट्टी चोखा एवं चाय बेचने वाले पवन पासवान कहते हैं कि नोटबंदी का असर उनके दुकान पर भी पड़ा है. पहले जहां एक से डेढ़ हजार रुपये का लिट्टी चोखा एवं चाय बेच लिया करते थे.
वहीं अब मुश्किल से तीन से चार सौ रुपये की ही बिक्री हो पाती है. इसका कारण वे मानते हैं कि शहर में लोगों की आवाजाही काफी घट गयी है. पहले लोग खरीदारी करने के लिये ज्यादा संख्या में लोग आया करते थे. नोटबंदी के बाद इसमें कमी हुई है. काफी कम संख्या में लोग मार्केट पहुंच रहे हैं. लोकल दुकानदार भी पहले की तरह चाय का ऑर्डर नहीं दे पा रहे हैं. पहले ग्राहकों के पहुंचने पर चाय का आर्डर दुकानदारों द्वारा दिया जाता था. इससे बिक्री ज्यादा हो जाती थी. पर ऐसा नहीं है. प्रधान डाक घर के सामने सत्तू एवं लिट्टी चोखा बेचने वाले अमर सिंह कहते हैं. नोटबंदी के दो तीन दिनों तक तो ज्यादा दिक्कतें हुईं. लोग पांच सौ के नोट थमा देते थे. मजबूरी में उन्हें कहना पड़ता था कि बाद में ही दे दीजियेगा. इस वजह से ज्यादा उधार तीन चार दिनों तक देना पड़ा. उनका कहना है कि जो नियमित रूप से उनकी दुकान पर आते-जाते रहते हैं, उनको पहचानते हैं. इसलिए उन्हें उधार देने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है. अमर सिंह कहते हैं कि नोटबंदी का असर उनकी दुकान पर भी पड़ा पर वैसा नहीं. बता दें कि अमरसिंह सत्तू, भूंजा एवं लिट्टी चोखा बेचकर ही अपनी बेटी को इंजीनियर बनाने का काम किया. इसी ठेला पर दुकानदारी कर उसने दो दो बेटों को ग्रेजुएशन कराया. आज दोनों प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है. उसने कहा कि उनके जीविका का एक मात्र साधन यही ठेला है. इससे उनका परिवार चलता है.
नोटबंदी का असर : लिट्टी चोखा की बिक्री भी हुई कम
दो तीन दिन देना पड़ा ज्यादा उधार, अब
आयी कमी

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