धनिया की नयी प्रभेद में कुबड़ा रोग से लड़ने की क्षमता

समस्तीपुर : डाॅ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित धनिया की नयी प्रभेद राजेंद्र धनिया-1 आरडी 385 को हरी झंडी मिल गयी है. 2016 में राजस्थान के अजमेर में अवस्थित देश के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र की कर्मशाला में इसे पटल पर रखा गया था. इसमें मौजूद देश के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2017 5:20 AM

समस्तीपुर : डाॅ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित धनिया की नयी प्रभेद राजेंद्र धनिया-1 आरडी 385 को हरी झंडी मिल गयी है. 2016 में राजस्थान के अजमेर में अवस्थित देश के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र की कर्मशाला में इसे पटल पर रखा गया था. इसमें मौजूद देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये वैज्ञानिकों ने गंभीर विचार किया. इस क्रम में राजेंद्र धनिया-1 की उपज क्षमता देश के कई राज्यों में अच्छी पायी गयी. इसके बाद अनुशंसा समिति ने राजेंद्र धनिया-1 को राष्ट्रीय स्तर पर अनुमोदित कर दिया.

इस प्रभेद को विकसित करनेवाले केंद्रीय विश्वविद्यालय के वरीय वैज्ञानिक डाॅ एसपी सिंह व डाॅ एके मिश्र ने बताया कि अखिल भारतीय समन्वित मसाला अनुसंधान परियोजना केरल के अंतर्गत 2016 में धनिया की उत्तम किस्म राजेंद्र धनिया-1 आरडी 385 के नाम से विकसित की गयी. इसकी उपज क्षमता देश के कई राज्यों में बेहतर पायी गयी. धनिया की इस विशेष किस्म की खासियत है कि पौधे की लंबाई एक सौ से 110 सेंटीमीटर तक ही होती है. इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 20 से 21 क्विंटल तक है. एसोन्सिल ऑयल 0.45 प्रतिशत है. यह नयी प्रभेद 120 से 125 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.
सबसे खास बात यह है कि धनिया में लगनेवाली कुबड़ा (स्मेट रॉल) नामक बीमारी के प्रति इसमें औसत प्रतिरोधक क्षमता है. इससे किसानों को उपज के दौरान अधिक जद्दोजहद भी नहीं करनी होगी. वैज्ञानिकों ने कहा कि कई किसानों के खेतों में इसका प्रत्यक्षण किया गया है. बेहतर उत्पादन के कारण किसान भी इस प्रभेद से खासे संतुष्ट हैं. किसान इसे लाभकारी मानकर इस नयी प्रभेद की उपज की ओर अपना रुख करेंगे. इससे मसाला उत्पाद किसानों की माली हालत में मजबूती आयेगी.
बिहार की करीब 10476 हेक्टेयर भूमि में धनिया की खेती की जाती है. किसान पहले धनिया की परंपरागत तरीके से खेती करते थे. आरएयू ने 1988 में धनिया की राजेंद्र स्वाति किस्म विकसित की. इसकी उपज क्षमता 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टर थी. इस किस्म में रोगरोधी प्रतिरोधक क्षमता कम होती चली गयी. इसके कारण किसानों को आर्थिक लाभ कम होने लगा. इसके कारण धनिया उत्पादन से किसान मुंह फेरने लगे थे.
आरएयू ने विकसित की धनिया की नयी प्रभेद राजेंद्र धनिया-1
20 से 21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज क्षमता
किसानों की बेहतरी के लिए जारी रखेंगे अनुंसधान
डाॅ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कुलपति डाॅ आरसी श्रीवास्तव ने धनिया की नयी प्रभेद को देश स्तर पर मान्यता मिलने पर प्रसन्नता जतायी है. उन्होंने इसे विकसित करनेवाले यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डा. एसपी सिंह व डा. एके मिश्र को बधाई देते हुए कहा कि कोई भी अनुसंधान अंतिम नहीं होता है. वैज्ञानिक किसानों के हित में और बेहतर प्रभेद विकसित करने के लिए अपना अनुसंधान जारी रखें. इससे देश के किसानों का भला होगा. उनकी माली हालत ठीक होगी. इसका सीधा असर देश क ी अर्थव्यवस्था को ठीक करने पर पड़ेगा. कुलपति ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में विभिन्न फसलों की नये प्रभेद को विकसित करने के लिए रिसर्च किये जा रहे हैं. वैज्ञानिकों को सफलता मिलेगी ही.

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