पूसा. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि देश में कृषि क्रांति का आगाज हो चुका है. बीते कुछ वर्षों से कृषि के क्षेत्र में देशस्तर पर अप्रत्याशित परिवर्तन हो रहा है. परिवर्तन की जड़ किसानों की सोच में समाहित है. गोवा में फिलहाल हिमाचल प्रदेश के सोलन से मशरूम उत्पादकों के लिए स्पॉन मंगाया जाता है. सर्वप्रथम गोवा के लिए मशरूम उत्पादक के हित में मशरूम स्पान लैब की जरूरत है. इससे गोवा के किसानों को अपने घर पर ही स्पान की उपलब्धता होगी. वह गुरुवार को डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित विद्यापति सभागार में मशरूम उत्पादन एवं प्रसंस्करण तकनीक विषय पर गोवा के 22 प्रशिक्षकों के 15 दिनी आवासीय प्रशिक्षण का उद्घाटन के बाद संबोधित कर रहे थे. राज्यपाल ने कहा कि देशभर के लोग पॉजिटिव सोच के साथ आगे बढ़ने लगे हैं. गोवा पर्यटक स्थल के रूप में विख्यात हो चुका है. विश्वभर से सैलानी गोवा आते हैं. अन्य प्रदेशों की विशेषताओं को भी गोवा में लाने की जरूरत है. गोवा में मशरूम बीज निर्माण शुरू करने की आवश्यकता है. इससे मशरूम उत्पादन के साथ मशरूम के उत्पादों से भी लोगों को जोड़ा जा सके. मशरूम के अलावा अन्य फसलों के लिए देशभर में केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय मार्गदर्शक के रूप में उभर कर सामने आया है. प्राकृतिक खेती एवं शिक्षा से भी गोवा के किसान लाभान्वित होंगे. गोवा में दो लाख से अधिक किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. उन्होंने कहा िक पीएम के उच्च कोटि की सोच के अनुसार किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में किसान क्रियाशील हो चुके हैं. किसानों की प्राकृतिक खेती से फिलहाल 27 प्रतिशत आमदनी बढ़ जाती है. 52 प्रतिशत लागत दर भी घटती है. देसी गायों के पालन से प्राकृतिक खेती की शुरुआत संभव है. राज्यपाल आर्लेकर ने कहा कि केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के लिए संपूर्ण राजभवन 24 घंटे खुला है. कृषि से जुड़े सभी कार्यों के निष्पादन के लिए तैयार है. गोवा के किसान कृषि विश्वविद्यालय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए भी तैयार हैं. प्रशिक्षणार्थियों के प्रशिक्षण गोवा के किसी एक गांव तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि संपूर्ण गोवा में प्रचारित प्रसारित करने की जरूरत है. संचालन डॉ कुमारी अंजली ने किया. धन्यवाद ज्ञापन निदेशक अनुसंधान डॉ अनिल कुमार सिंह ने किया. पोषण पर भी विश्वविद्यालय की नजर : कुलपति डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीएस पांडेय ने कहा कि कृषि शिक्षा की जननी पूसा में ही अवस्थित है. इस विश्वविद्यालय में 27 राज्यों के छात्र-छात्राएं एवं 17 राज्यों के फैकल्टी अध्ययनरत हैं. मशरूम के प्रसंस्करण पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है. इसकी खेती के लिए भूमि की जरूरत नहीं होती है. विश्वविद्यालय से 52 उत्पाद बनाकर ब्रांडिंग की गयी है. खाद्य सुरक्षा के बाद अब पोषण सुरक्षा पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक क्रियाशील हैं. बीते दो वर्ष में विश्वविद्यालय के लिए 12 पेटेंट एवं 24 प्रभेद लाकर विश्वविद्यालय ने बिहार के लिए कीर्तिमान स्थापित किया है. प्राकृतिक खेती, शिक्षा एवं मिलेट्स की दिशा में विश्वविद्यालय बेहतर कार्य कर रहा है.
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