विद्यापतिनगर : यह सच है. क्षेत्र में नील गायें आतंक का पर्याय बनी है. किसानों को प्राकृतिक आपदा, महंगाई से दुखती रगों पर नील गायें गहरा जख्म दे रही है. प्रखंड के बड़े भू भाग का घना बैसा गाछी नील गायों के लिए सेफ जोन कहा जाता है. दिन के उजाले में छिपा यह जंगली विशाल जानवर अंधेरा होते ही खेतों में लगी फसल पर टूट पड़ते हैं. इससे यौवन काल में ही लहलहाती फसलें असमय काल के गाल में समा जाती है. कड़ाके की ठंड और घने कोहरे के बीच घरेलू पारंपरिक हथियार से किसान इसका सामना करते देखे जाते हैं. बताते चलें कि प्रखंड के अस्सी फीसदी जनजीवन खेती पर आधारित है. पेट का निवाला, बच्चे की परवरिश, पर्व त्योहार सहित सांस्कृतिक परंपराओं का निर्वहन किसान विभिन्न फसलों की पैदावार कर कर पाते हैं. प्रखंड में गेंहू, मक्का, तिलहन, आलू, मटर, तम्बाकू सहित अनेक प्रकार की सब्जियां खेतों में जवानी की दहलीज पर हैं. इन क्षेत्रों में जंगली जानवरों की संख्या तेजी से बढ़ी है. बाढ़ का पानी व शिकारियों के शिकार से सुरक्षित रहने के लिए यहां का विशाल भू भाग में फैला बैसा घना बागीचा जंगली जानवरों का शरणस्थली बनी हुई है.
मंत्री ने की थी पहल
क्षेत्र के विधायक सह तत्कालीन वित्त वाणिज्यकर मंत्री विजय कुमार चौधरी ने नील गायों से निजात दिलाने की पहल की थी. क्षेत्र के किसानों की हाय तौबा पर मंत्री श्री कुमार ने नील गायों से फसलों की सुरक्षा को लेकर इस ओर सफल प्रयास किया था. जिससे कई पंचायत में शूट आउट का अभियान चला था. पर यह प्रयास अब अधूरा साबित हो रहा है.नील गाय का हुआ था शूट आउट
वर्ष 24 के प्रारंभ माह में प्रखंड क्षेत्र में फसलों को नुकसान कर रहे सौ से अधिक नील गायों को शूट आउट किया गया था. इनमें 22 जनवरी 24 को सिमरी पंचायत में आठ, बालकृष्णपुर मड़वा गांव में चार, चमथा के दियारा क्षेत्र में नौ, 29 जनवरी 24 को बंगराहा पंचायत में बीस, 30 जनवरी 24 को सोठगामा गांव में पांच नील गाय का खात्मा किया गया था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है