एवोकाडो फल पोषक तत्व से युक्त : वैज्ञानिक
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर पादप रोग व नेमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष सह अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ एसके सिंह ने कहा कि एवोकाडो फलो की खेती के लिए उत्तर बिहार की कृषि जलवायु का अध्ययन किया गया
पूसा : डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर पादप रोग व नेमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष सह अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ एसके सिंह ने कहा कि एवोकाडो फलो की खेती के लिए उत्तर बिहार की कृषि जलवायु का अध्ययन किया गया. इसमें इसकी खेती करने की प्रबल संभावना बनता दिखाईं दिया है. उन्होंने कहा कि समन्वित फल परियोजना के तहत पिछले साल इसके कुछ पेड़ पूसा में अनुसंधान के तौर पर लगाया गया था. कहा कि एवोकाडो की खेती खास तरह के फलों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है. इसकी खेती कर किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं. इसे बेरी की तरह दिखने वाला बड़े आकार का गुद्देदार फल बताते हुए कहा कि इसके अंदर एक बड़ा बीज होता है. जिसके कारण इसे एलीगेटर पियर्स या बटर फ्रूट नाम से भी जाना जाता है. वहीं वैज्ञानिक ने हास एवोकाडो किस्म को अन्य प्रभेदों की तुलना में सबसे लोकप्रिय व पोषक तत्व से युक्त बताया. डॉ सिंह ने कहा कि इस फल में स्वास्थ्य ओमेगा 3, फैटी एसिड, एवोकाडो फाइबर, विटामिन ए, बी, सी, ई और पोटेशियम जैसी पोषक तत्व पाया जाता है जो पाचन शक्ति को मजबूत करने में एवं वजन घटाने के साथ आंख की रौशनी को बढ़ाने लिवर को स्वस्थ रखने, हड्डियां को मजबूत करने व मधुमेह को नियंत्रित करने सहित एवोकाडो खाने से कैंसर के होने की संभावना भी कमी आने की बात को कहा. उन्होंने कहा कि एवोकैडो के बीज से पौध को तैयार कर उसकी रोपाई की जाती है. इसके लिए बीजों को 5 डिग्री तापमान या फिर सूखे पीट में भंडारित कर तैयार किया जाता है. वहीं फलों से निकाले गये बीज को पॉलीथिन बैग या नर्सरी बेड पर सीधे तौर पर बुवाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए. बीजों को नर्सरी में छह माह तक उगाने के बाद खेत में लगाने के लिए किसान को निकाल लेना चाहिए है. कहा कि रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर खरपतवार को बाहर करते हुए खेत में हल्की सिंचाई करने की बात को कही. जुताई के बाद भुरभुरी मिट्टी को पाटा लगाकर समतल करने के बाद खेत में पौधा के रोपाई करने के लिए 90 X 90 सेमी आकार वाले गड्ढों को तैयार कर लेना चाहिए. इसके बाद इन मिट्टी के साथ 1 अनुपात 1 में खाद को मिट्टी में मिलाकर मई व जून माह में किसानों को गड्ढा भर देना चाहिए. खासकर बिहार की कृषि जलवायु में इसे जुलाई-अगस्त में लगाने की बात कही.
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