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संदिग्ध शिक्षकों के प्रमाण-पत्रों का होगा दोबारा सत्यापन

सरकारी प्राइमरी स्कूलों में फर्जी शिक्षकों पर नकेल कसने के लिए चरणबद्ध ढंग से सत्यापन कराया जायेगा.

समस्तीपुर : सरकारी प्राइमरी स्कूलों में फर्जी शिक्षकों पर नकेल कसने के लिए चरणबद्ध ढंग से सत्यापन कराया जायेगा. संदिग्ध शिक्षकों के प्रमाण-पत्रों का सत्यापन संबंधित बोर्ड या विश्वविद्यालय से दोबारा कराया जायेगा. वहीं मेधा सूची पर भी निगरानी विभाग की पैनी नजर है. निगरानी विभाग का कहना है कि फर्जीवाड़ा सरकारी प्राइमरी स्कूलों में अमूमन तीन तरीकों से फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जाता है. पहली श्रेणी में फर्जी प्रमाण-पत्रों पर नौकरी हासिल करना, दूसरी श्रेणी में किसी अन्य के प्रमाण-पत्रों के आधार पर नौकरी करना और तीसरी श्रेणी में नौकरी किसी की होती है और पढ़ता कोई और है यानी प्रॉक्सी शिक्षक. जानकारी के मुताबिक 11,454 नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक व प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्र की जांच होनी है. अब तक करीब 3545 शिक्षकों का फोल्डर नहीं मिल पाया है. वैसे तो फर्जी व अमान्य शैक्षणिक प्रमाण-पत्र पर बहाल इन शिक्षकों पर कार्रवाई कई वर्षों से कागजी तौर पर की जा रही है. जब विभाग ने सख्ती बरतते हुए ऐसे शिक्षकों को विभागीय वेबसाइट पर अपने प्रमाण-पत्रों को अपलोड करने का निर्देश दिया था तो ऐसे कई शिक्षक शपथ पत्र विभागीय वेबसाइट पर अपलोड कर अजीबो गरीब तर्क दिये हैं. बताया जा रहा है कि कई शिक्षक अपने शैक्षणिक प्रमाण पत्र के खोने का हवाला देकर कार्रवाई से बचाव के चक्कर में हैं तो कई अपने शैक्षणिक प्रमाण पत्र नष्ट होने की बात कह रहे हैं. इधर, निगरानी विभाग का कहना है कि नियोजन इकाई और मुखिया के साथ तत्कालीन पंचायत सचिव की भूमिका की जांच भी की जायेगी. शिक्षा विभाग के मुताबिक पहले शिक्षकों के डॉक्यूमेंट शिक्षा विभाग को मिल जायेंगे, उसके बाद तत्कालीन नियोजन इकाई से मेधा सूची तलब करने के बाद तत्कालीन मुखिया और पंचायत सचिव की भूमिका की जांच की जायेगी. कोर्ट से अमान्य किये गये शैक्षणिक संस्थानों के प्रमाण पत्र पर जिले में नियोजित शिक्षकों की संख्या कम नहीं है. लेकिन, नियोजन इकाई की मेहरबानी से ऐसे नियोजित शिक्षकों की चांदी कट रही है. ऐसे शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ उनके प्रमाण पत्रों के जांच तक ही सिमट कर रह गई है. जिले में कितने फर्जी शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं? इसकी अपडेट जानकारी शिक्षा विभाग के पास नहीं है. जांच के क्रम में वर्ष 2014 में मामला सामने आया था कि फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से शिक्षक बहाल हो गये हैं. जांच का निर्णय लिया गया. सुस्त रफ्तार के बाद हाईकोर्ट में मामला पहुंचा. मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 में जांच का जिम्मा निगरानी विभाग को सौंप दिया. निगरानी विभाग को जिलों में जांच अधिकारी तैनात करने के निर्देश दिये गये. जांच की प्रक्रिया बढ़ी तो गड़बड़ी सामने आयी.

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