पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता के लिए स्कूलों में चलेगा कोर्स
पशु-पक्षियों के प्रति बच्चों को संवेदनशील बनाने के लिए स्कूलों में कोर्स शुरू होगा. इसे लेकर बिहार शिक्षा परियोजना के निदेशक ने जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिया है.
समस्तीपुर : पशु-पक्षियों के प्रति बच्चों को संवेदनशील बनाने के लिए स्कूलों में कोर्स शुरू होगा. इसे लेकर बिहार शिक्षा परियोजना के निदेशक ने जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिया है. कक्षा 5वीं से 8वीं और 9वीं से 12वीं के बच्चों के लिए कोर्स मॉड्यूल तैयार किया गया है. प्रावधान के अनुसार हर कक्षा के लिए पांच कोर्स मॉड्यूल तैयार किया गया है. बच्चों को इससे ट्रेनिंग कराई जाएगी. राज्य परियोजना निदेशक ने निर्देश दिया है कि स्कूलों में बच्चों को पशु-पक्षियों के प्रति दया के बारे में सिखाने और संवेदनशील बनाने के लिए पहल की गई है. भारतीय जीव-जंतु कल्याण बोर्ड की ओर से इसमें मदद की गई है. अधिकारियों ने कहा कि पहले चरण में ऑनलाइन कोर्स कराया जाएगा. सभी हेडमास्टर को हिदायत दी गई है कि पहले शिक्षकों को इसमें शामिल कराएं. डीपीओ एसएसए मानवेंद्र कुमार राय ने बताया कि अब विद्यालयों में बच्चों को पशुओं से प्रेम करना भी सिखाया जाएगा. जिसका उद्देश्य भावी पीढ़ी को पशुओं के प्रति दयाभाव रखने को प्रेरित करना तथा उनमें जागरूकता पैदा करना है. पशु पक्षियों का साहचर्य प्राप्त करना हमारी परम्परा का अटूट हिस्सा रहा है. पक्षियों को दाना चुगाना, चीटियों को आटा डालना, मछलियों को भोजन, बंदरों को फल एवं चना और गाय व कुत्ते को रोटी खिलाना इसी का उदाहरण है. इतना ही नहीं, एक नन्हें जानवर को पालना भी कम रोमांचक नहीं होता. धीरे-धीरे यह रोमांच प्यार और वात्सल्य में परिवर्तित होकर आनंद प्रदान करने लगता है. जो व्यक्ति के तनाव के स्तर को भी कम करता है. पालतू जानवर कई मायनों में अच्छे मित्र या सहायक सिद्ध होते हैं. आम जिंदगी में हम पशु प्रेम के तमाम किस्से सुनते हैं, लेकिन जिंदगी की आपाधापी में व्यक्ति इस सबसे दूर होता जा रहा है. पशुओं के प्रति सहानुभूति व संवेदनशीलता भी वर्तमान समय में कम हुई है. संस्कार और नैतिक मूल्य ऐसी बुनियाद हैं, जिन पर कामयाबी की इमारत खड़ी होती है. पहले संयुक्त परिवारों में दादा-दादी बच्चों को कहानियों के जरिए सीख दिया करते थे. कहानियां सुनना बच्चों को अच्छा भी लगता था और खेल-खेल में उनके मन में संस्कार और नैतिक मूल्यों के बीज भी रोप दिए जाते थे. आज आधुनिकता के दौर में यह परंपरा कहीं छूट सी गई है जिसे शिक्षा विभाग ने जोड़ने का निर्णय लिया है. कहानी में बच्चों को जानवरों और पक्षियों प्रति संवेदनशील बनने की सीख दी गई है. कहानी की भाषा सरल है और इसके मुख्य पात्र भी उनकी तरह स्कूली बच्चे हैं. इससे बच्चे कहानी से खुद को आसानी के साथ जोड़ सकते हैं. यह मीरा की कहानी है जो गौरैया के बारे में सुनती है, तो सोचती है कि उसे कैसे वापस लाया जा सकता है. इसके बाद वह अपने मम्मी-पापा के साथ बाजार जाकर दाना और सकोरा लेकर आती है. जब वह इन्हें छत पर रखती है सुबह उसे छत पर नन्हीं गौरैया के साथ तोते और गिलहरी दिखती है. उन्हें देख वो बहुत खुश होती है और स्कूल में सभी को बताती है. उसकी तरह उसके क्लास के दूसरे बच्चे भी जानवरों की मदद करते हैं.
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