अविश्वास फंसा कानूनी दांव पेंच में, सियासी खेल शुरू
जिप अध्यक्ष की कुर्सी की लड़ाई की डगर काफी कठिन होने वाली है. फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव कानूनी दांव-पेच में फंसता नजर आ रहा है.
समस्तीपुर : जिप अध्यक्ष की कुर्सी की लड़ाई की डगर काफी कठिन होने वाली है. फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव कानूनी दांव-पेच में फंसता नजर आ रहा है. जिप अध्यक्ष अगले एक-दो दिनों में जिलाधिकारी व डीडीसी से मिलकर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए विपक्षी जिप पार्षदों के मंसूबों पर पानी फेरने की तैयारी कर ली है. पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष एवं वर्तमान में जिला परिषद एक सदस्य ने बताया कि अध्यक्ष पद के लिए खेल शुरू हो चुका है. इसको लेकर दोनों गुट पार्षद के साथ बैठक कर अपनी-अपनी बात रख रहे हैं. लेकिन, सभी कानूनी अड़चनों पर विचार-विमर्श भी विधि सलाहकार से करने में जुटे हैं. इधर, कुछ विधि जानकारों ने बताया कि अविश्वास प्रस्ताव कानूनी तौर पर वैध नहीं है. विदित हो कि विगत वर्ष जनवरी माह में जिला परिषद की अध्यक्ष खुशबू कुमारी के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव कोरम के अभाव में गिर गया था. 18 जिला पार्षदों ने अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन बुलाई गई विशेष बैठक में अध्यक्ष समेत मात्र पांच पार्षद ही उपस्थित हो सके. इससे अविश्वास प्रस्ताव पर न बहस हुई. न ही वोटिंग करायी गयी थी. इधर, विपक्ष के एक जिप पार्षद ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पटना उच्च न्यायालय में अपील संख्या 125 वर्ष 2024 व सिविल रिट अधिकारिता मामला संख्या 1726 वर्ष 2024 समेत अन्य मामलों की एक साथ सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन ने जिला परिषद अध्यक्ष एवं प्रखंड प्रमुख के अविश्वास प्रस्ताव पर जजमेंट देते हुए कहा है कि अविश्वास प्रस्ताव के दिन जितने सदस्य उपस्थित होंगे, वे वोट देंगे उसमें बहुमत देखा जायेगा. इस दौरान कुल संख्या नहीं देखी जायेगी. इधर, जिप अध्यक्ष गुट का कहना है कि अध्यक्ष/उपाध्यक्ष की पूरी पदावधि में ऐसा कोई अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ एक बार ही लाया जा सकेगा. अगर अधिनियम में परिवर्तन किया गया है तो सदन को अवगत कराया जाए. 27 अगस्त 2015 को प्रकाशित गजट के अनुसार अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की पूरी पदावधि में सिर्फ एक बार ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है.
उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत आवश्यक
अधिवक्ता प्रकाश कुमार ने बताया कि पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन, जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस हरीश कुमार की पूर्ण पीठ ने कहा कि जिला परिषद के अध्यक्ष या उपाध्याय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने के लिए यह जरूरी है कि उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत हो, न कि कुल निर्वाचित सदस्यों का बहुमत. हाईकोर्ट बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 की धारा 70 (4) की जांच कर रहा था, जिसके लिए विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए बुलाई गई बैठक में जिला परिषद के प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से किसी अध्यक्ष या उपाध्याय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करना आवश्यक है. धारा 70 (4) (i) “यदि विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए बुलाई गई बैठक में जिला परिषद के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से उस पर विश्वास की इच्छा व्यक्त करने वाला प्रस्ताव पारित किया जाता है तो यह माना जाएगा कि उसने अपना पद खाली कर दिया है. एक बार नोटिस जारी होने के बाद ऐसी कोई बैठक स्थगित नहीं की जायेगी. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए बुलाई गई विशेष बैठक के लिए कोरम की आवश्यकता नहीं होगी. इस मामले के संबंध में पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ के दो परस्पर विरोधी निर्णय थे. सरिता कुमारी बनाम बिहार राज्य और अन्य (2008 की एलपीए संख्या 940) में, न्यायालय ने माना कि बहुसंख्यक जिला परिषद के लिए सीधे चुने गए व्यक्तियों का है, जैसा कि धर्मशीला कुमारी बनाम हेमंत कुमार और अन्य में निर्णय के विपरीत है. ((2021) 3 पीएलजेआर 346), जहां न्यायालय ने माना कि बहुमत बैठक में उपस्थित और भाग लेने वाले निर्वाचित सदस्यों का है. इन परस्पर विरोधी निर्णयों के कारण, मामले को पूर्ण न्यायाधीश पीठ के पास भेज दिया गया था. हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 70 (4) (आई) में, वाक्यांश “विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए बुलाई गई बैठक में ” को खंड के शुरुआती भाग के अलावा पढ़ा जाना चाहिए, जो यह प्रदान करता है कि अविश्वास प्रस्ताव “प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से ” किया जायेगा. इस प्रकार, धारा 70 (4) के अनुसार बहुमत उन सदस्यों की संख्या का बहुमत है जो बैठक में उपस्थित होंगे जो विशेष रूप से अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने के प्रयोजनों के लिए बुलाई गई है. धारा 70 (4) के पीछे विधायी इरादे की जांच करते हुए, कोर्ट ने कहा कि प्रावधान बैठक को स्थगित करने की अनुमति नहीं देता है और कोरम की आवश्यकता नहीं है यानी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाने के लिए न्यूनतम सदस्यों की आवश्यकता नहीं है. इन प्रावधानों से पता चलता है कि बहुमत का मतलब केवल उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्य होंगे क्योंकि कोरम की कोई आवश्यकता नहीं है. इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि धारा 70 (4) (i) को अलग से नहीं माना जा सकता है और यह प्रभाव अन्य प्रावधानों को दिया जाना चाहिए. न्यायालय ने धारा 70 (4) के अन्य खंडों पर गौर किया जो अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ाने को सीमित करते हैं. उदाहरण के लिए, अध्यक्ष और उपाध्याय के कार्यकाल के पहले दो वर्षों के दौरान एक प्रस्ताव को अधिसूचित नहीं किया जा सकता है या जिला परिषद के कार्यकाल की समाप्ति के अंतिम छह महीनों के दौरान एक प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है. इन प्रावधानों की जांच करते हुए, यह देखा गया कि “अनुभव यह था कि “अविश्वास ” प्रस्ताव एक आकस्मिक और लापरवाह तरीके से लाए गए थे और कई बार, जब इसे लाया गया था, तो चर्चा और मतदान को कुछ लोगों की साजिशों से विफल कर दिया गया था, जिससे जिला परिषद का पूरा कार्यकाल गैर-कार्यात्मक हो गया और परिषद को चालाकी और भ्रष्टाचार के ढेर में बदल दिया गया. इस प्रकार, धारा 70 (4) की व्याख्या सामंजस्यपूर्ण रूप से की जानी चाहिए. हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि रिट याचिकाओं और अपीलों का निर्णय बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा 70 (4) के लिए उसके द्वारा निर्धारित सिद्धांत पर किया जायेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है