Durga Puja: 500 वर्षों से चली आ रही है अनोखी प्रथा, इस जिले में अलग अंदाज में होता है विसर्जन कार्यक्रम

Durga Puja: माता की प्रतिमा को रस्सी के सहारे नचाते हुए भक्त नदी तक पहुंचे. मान्यता है कि यहां माता के दरबार में आने वाले लोग कभी खाली हाथ नहीं लौटते. यही कारण है कि यहां हर साल कई जिलों से श्रद्धालु पहुंचते हैं.

By Paritosh Shahi | October 13, 2024 6:07 PM
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Durga Puja: माता दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन बिहार के समस्तीपुर जिले के पतैली दुर्गा स्थान मंदिर में रविवार की सुबह परंपरागत तरीके से धूमधाम के साथ किया गया. इस अवसर पर हजारों भक्तों ने माता की प्रतिमा को अपने कंधों पर उठाकर और नचाते हुए लगभग एक किलोमीटर लंबा जुलूस निकाला, जो जमुआरी नदी के तट पर समाप्त हुआ. हर साल की भांति, इस साल भी माता की विसर्जन प्रक्रिया को भव्य रूप से आयोजित किया गया. मंदिर से माता की प्रतिमा को जयकारों के बीच बाहर निकाला गया, और भक्तों ने उत्साह के साथ उन्हें अपने कंधे पर उठाया. जुलूस में शामिल लोग माता की जय-जयकार करते हुए आगे बढ़ते रहे. मंदिर के सामने खाली जगह में प्रतिमा को भव्य तरीके से नचाया गया, जिसे देखने के लिए आस-पास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग जुटे.

कभी खाली हाथ नहीं लौटते दरबार में आने

माता की प्रतिमा को रस्सी के सहारे नचाते हुए भक्त नदी तक पहुंचे. मान्यता है कि यहां माता के दरबार में आने वाले लोग कभी खाली हाथ नहीं लौटते. यही कारण है कि यहां हर साल कई जिलों से श्रद्धालु पहुंचते हैं. लोगों का मानना है कि नवरात्रि के दौरान यदि किसी कारणवश माता के दर्शन नहीं हो पाए, तो इस नाच को देखकर उनके सभी क्लेश दूर हो जाते हैं और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है. इस मान्यता के चलते ही दूर-दूर से लोग इस अवसर पर माता के नाच को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं.

500 वर्षों से चली आ रही है परंपरा

मान्यता है कि गांव के स्व. बतास साह ने करीब 500 वर्ष पहले कामर कामाख्या से माता की प्रतिमा लेकर आए और इस स्थान पर स्थापित किया. उन्होंने एक साथ मां दुर्गा और मां काली का मिट्टी का मंदिर बनाया.आज उनके खानदान के लोग नियमित रूप से मंदिर की देखभाल करते हैं. स्थानीय निर्मल साह ने बताया कि स्थानीय लोगों की मदद से 20 वर्ष पहले पक्का मंदिर का निर्माण हुआ. नवरात्रि के मेले में लोग माता की प्रतिमा बनवाने के लिए सालों इंतज़ार करते हैं. इसके लिए उन्हें पहले मेला कमेटी में नाम लिखवाना होता है. कई सालों बाद उनकी बारी आती है. वर्तमान में, कमेटी के अनुसार, पहले से ही 15 वर्षों से अधिक समय तक की बुकिंग हो चुकी है, और हर साल नए लोग जुड़ते रहते हैं.

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