मोहिउद्दीननगर : स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज से ठीक 50 वर्ष पूर्व सबसे विवादास्पद व अलोकतांत्रिक दौर था. जिसे आपातकाल के रूप में जाना जाता है. इस अवधि में असहमति को दबाना, सरकारी दमन, मानवाधिकार का उल्लंघन, प्रेस की स्वतंत्रता का हनन जैसी घटनाएं लोकतांत्रिक भारत के संसदीय इतिहास में इसे काला अध्याय के रूप में जाना जाता है. यह बातें मंगलवार को मटिऔर स्थित काली मंदिर के परिसर में आपातकाल के 50 वीं वर्षगांठ के पूर्व संध्या पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए जेपी सेनानी रामबहादुर सिंह ने कही. संचालन जेपी सेनानी श्रीनिवास सिंह ने किया. कार्यक्रम का आयोजन जेपी सेनानी पटोरी अनुमंडल संघ की ओर से किया गया. वक्ताओं ने कहा कि विभिन्न झंझावातों को झेलते हुए देश में लोकतांत्रिक परंपराओं में आमजन द्वारा आस्था रखने की बदौलत लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं. आपातकाल के दौरान उत्पन्न परिस्थितियों के मूल्यांकन के बाद भारत का लोकतंत्र समयानुसार परिपक्व होता जा रहा है. सैद्धांतिक रूप से देश के सत्तारूढ़ दल व विपक्ष में मतभेद हो सकता है किंतु राष्ट्रीयहितों को देखते हुए आम सहमति बनाने की जरूरत है. ताकि विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने में मदद मिल सके देश के युवा संविधान के महत्व को जानने लगे हैं. अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सजग हो रहे हैं. वर्तमान समय में चुनाव में खर्च के आधार पर आम आदमी राजनेता नहीं हो सकता. लोकतंत्र को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सरकार व राजनीतिक दलों को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे आमजन भी नेतृत्व का अधिकार प्राप्त कर सके. चुनाव के दौरान लगातार घट रही मतदान प्रतिशतता चिंतनीय स्थिति उत्पन्न कर रही है. इसे बढ़ाने के लिए हमें हरसंभव कोशिश करनी चाहिए. इस दौरान आपातकाल के दौरान अपनी जान गंवाने वाले लोगों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई. मौके पर राम आधार सिंह, सोनू सिंह, सुभाष सिंह, सोनू ठाकुर, शशि कुमार सिंह, राज नारायण राय, उज्जवल कुमार सिंह, संजय झा मौजूद थे.
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