पूसा : डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र द्वारा जलवायु अनुकूल खेती की तकनीक से जुड़े विषय पर शोध किया गया. इसमें पाया गया कि इस तकनीक को अपना कर खेती करने वाले किसानों की आय में ढाई गुना से अधिक बढ़ोतरी हुई है. कुलपति डॉ. पीएस पांडेय ने कहा किसान जलवायु अनुकूल खेती की तकनीक को अपनाकर अपनी आय को बढ़ा कर आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बना सकते हैं. उन्होंने कहा कि शोध के दौरान सामाजिक व आर्थिक पहलुओं से जुड़ी जानकारी को इकट्ठा किया गया. इसमें पाया गया कि बढ़े आय का तीस प्रतिशत किसानों ने शिक्षा पर खर्च किया है. जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ रत्नेश कुमार झा ने बताया कि कुलपति के निर्देश पर कई जिला के विभिन्न गांवों के खेतों में विषय से जुड़े शोध से केंद्र ने कई निष्कर्ष निकाले हैं जो आने वाले समय में कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है. उन्होंने कहा कि अक्सर यह देखा जाता है कि गेहूं फसल पकने के समय बरसात व तेज हवा आ जाती है. इसके कारण गेहूं के उत्पादन क्षमता में करीब बीस से चालीस प्रतिशत तक की कमी आ जाती है. शोध के दौरान यह पाया गया कि यदि गेहूं की जड़ मजबूत हो तो तेज हवा और बारिश के प्रभावों को करीब नब्बे प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. इसके लिए जीरो टिलेज विधि से बुआई किसानों को करने की सलाह दी. इसमें खाद की भी समुचित मात्रा का प्रयोग होता है. डॉ झा ने कहा कि विश्वविद्यालय की ओर से किसानों को लीफ कलर चार्ट उपलब्ध कराया गया है. जिससे पत्ते के रंग का मिलान कर खाद का छिड़काव करने से किसानों को खेती की लागत में कमी हुई है. मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है. वैज्ञानिक डॉ एसपी लाल ने बताया कि धान की फसल के साथ जलवायु अनुकूल खेती करने वाले किसानों ने मेड़ पर अरहर का पौधा लगाया. जिसका सकारात्मक प्रभाव धान के फसल पर देखा गया.
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