कबीर ने निर्भीक होकर धार्मिक पाखंड का विरोध किया : महंत राम दास
कबीर ने निर्भीक होकर समाज में पलने वाले पाखंड का विरोध किया था. वह कट्टर सांप्रदायिक ताकतों के भी मुख्य विरोधी थे. अपनी बेवाकी से उन्होंने अंतःकरण की शुद्धता से सामाजिक एवं आध्यात्मिक चेतना का विकास किया.
मोहिउद्दीननगर : कबीर ने निर्भीक होकर समाज में पलने वाले पाखंड का विरोध किया था. वह कट्टर सांप्रदायिक ताकतों के भी मुख्य विरोधी थे. अपनी बेवाकी से उन्होंने अंतःकरण की शुद्धता से सामाजिक एवं आध्यात्मिक चेतना का विकास किया. असल में कबीर मानवीय प्रेम व मूल्य के उद्गाता थे. यह बातें बोचहा में रविवार को कबीर जयंती समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित अंतर जिला संत सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए महंत रामदास साहब ने कही. संचालन महंत अर्जुन साहब ने किया. संतों ने कहा कि बिना त्याग और साधना के ईश्वरत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती. कबीर दास आत्मज्ञान एवं परमात्म ज्ञान के लिए भी सद्गुरु की कृपा को मार्गदर्शन के रूप में अनिवार्य मानते थे. स्वयं का या पर में निम्मजन ही परमात्मा की प्राप्ति है. कबीर के विचार व वाणी आज भी प्रासंगिक है. वे कठोर सत्य के अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध थे. मानवीयता की सर्वोच्चता, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना, सहअस्तित्व, परोपकारी व परस्पर सहयोग की भावना से स्थापित होगी. मानव धर्म ही सभी धर्मों का सार है. बिना त्याग व साधना के ईश्वरत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती. पवित्र भावना से किया गया हर कर्म पूजा है. मनुष्य को कर्तव्य परायणता के साथ आत्म परायणता के गुण को आत्मसात करना चाहिए. कबीर की वाणी त्याग, आध्यात्मिक व आत्मिक जीवन के लिए प्रकाश स्तंभ के समान है. संतों ने निरोग, दीर्घायु, सुखमय, शांतिमय व आनंदमय जीवन के लिए सभी तरह के नशीले पदार्थों के सेवन करने से परहेज करने की आमजन से अपील की. वहीं राज्य में लागू शराबबंदी कानून को उचित ठहराते हुए कहा कि इसका प्रभाव सामाजिक क्षेत्रों में तेजी से दिखने लगा है. परंतु कतिपय असामाजिक व निहित स्वार्थी तत्व इसमें बाधक बन रहे हैं. इस दौरान श्रद्धालु सुमधुर भजनों को सुनकर भक्ति सागर में गोता लगा लगा रहे थे. कार्यक्रम के अंत में हाल के दिनों में गांव में असमय कालकलवित हुए युवकों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके पर सत्तो साहब, नीरस दास, वंदेमातरम साहब, सहदेव साहब, बटोर साहब, महंत विजय दास, कपिल साहब, राम उद्देश्य साहब, हरूनी साहब, लक्ष्मी साहब, रामप्रीत साहब, भिखारी दास, गजेंद्र प्रसाद आर्य, राजीव कुमार आर्य, संजीव कुमार आर्य, हिमांशु कुमार मौजूद थे.
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