मिट्टी के दीये जलाना हमारी परंपरा, इसका सबको रखना होगा ध्यान
मिट्टी का दीया पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. इसे बनाने में किसी हानिकारक रसायन का उपयोग नहीं होता है. यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है.
सरायरंजन प्रखंड स्थित उच्च विद्यालय रुपौली के शिक्षक, छात्र-छात्राओं ने मिट्टी के दीप जलाकर प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाने का संकल्प लिया
समस्तीपुर : मिट्टी का दीया पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. इसे बनाने में किसी हानिकारक रसायन का उपयोग नहीं होता है. यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है. जलने के बाद भी यह पूरी तरह से प्राकृतिक रूप में मिट्टी में मिल जाता है, जिससे कोई कचरा उत्पन्न नहीं होता. माना जाता है कि मिट्टी के दीये से शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो वातावरण को पवित्र और शुभ बनाती है. यह दीप जलने पर धीरे-धीरे तेल को जलाता है, जिससे हल्की और स्थिर रोशनी उत्पन्न होती है, जो मानसिक शांति देती है. मिट्टी के दीये में सरसों का तेल डालकर जलाने से हवा में हल्की सुगंध फैलती है, जो रोगाणुओं को खत्म करने में सहायक हो सकती है. सरसों का तेल एक प्राकृतिक कीटनाशक की तरह काम करता है, जिससे हवा की शुद्धि होती है और सांस लेने में आसानी होती है. मिट्टी का दीया सादगी और भारतीय परंपरा का प्रतीक है. यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा हुआ है और दिवाली जैसे त्योहारों में इसका विशेष महत्व है. प्लास्टिक या बिजली के दीयों की तुलना में मिट्टी का दीया हमारी परंपराओं को बनाए रखता है और त्योहारों में आत्मीयता जोड़ता है. आधुनिकता के दौर में हम कृत्रिम लाइट पर अधिक निर्भर हो गये हैं और अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. इन परिस्थितियों को देखते हुए इस दीपावली हमें मिट्टी के दीपक जलाने का संकल्प लेना है. इसी उद्देश्य से प्रभात खबर ने अभियान शुरू किया है. मंगलवार को सरायरंजन प्रखंड स्थित उच्च विद्यालय रुपौली के शिक्षक, छात्र-छात्राओं ने मिट्टी के दीप जलाकर प्रदूषणमुक्त दीपावली मनाने का संकल्प लिया.
पर्यावरण बचेगा तभी आयेगी असली खुशहाली
प्रभारी प्रधानाध्यापक मनु कुमार ने छात्र-छात्राओं को बताया कि मिट्टी के दीये जलाने से न केवल हम पर्यावरण की रक्षा करते हैं, बल्कि अपनी परंपराओं और समाज को भी सहयोग देते हैं. इसलिए, दिवाली और अन्य अवसरों पर मिट्टी का दीया जलाना हमारे लिए शुभ, लाभकारी और संवेदनशीलता भरा विकल्प है. जब पर्यावरण बचेगा तभी जीवन में असली खुशहाली आयेगी. उन्होंने कहा कि आधुनिकता के दौर में दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा लगभग विलुप्त होती जा रही है. इससे सामाजिक रूप से और पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता. दीपावली का त्योहार मिट्टी के दीये से जुड़ा हुआ है. दीया जलाने की परंपरा आदि काल से रही है. आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे चलाने लगे हैं. इससे एक तरफ मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुम्हारों के घरों में अंधेरा रहने लगा तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को अपना कर अपनी सांसों को ही खतरे में डाल दिया.दीपावली दीपों का त्योहार है
शिक्षक गौतम कुमार, पूनम कुमारी, डा. पुष्पा रानी, देवेंद्र कुमार, वीरेंद्र तिवारी, अमरजीत कुमार, निवास कुमार, रेणु कुमारी ने कहा कि पर्यावरण और सेहत को ध्यान में रखते हुए हमें प्रदूषण मुक्त दीपावली मनानी चाहिए.प्रदूषण न फैले इसके लिए इको-फ्रेंडली दीपावली मनाने की जरूरत है, सभी को इस दिशा में जागरूक होना चाहिए. हमें खुशियों के साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा. सरसों के तेल के दीये जलाएं जिससे प्रदूषण न हो तथा धुएं व तेज आवाज वाले पटाखों से दूरी बनानी चाहिए. दीपावली दीपों का त्योहार है. मिट्टी के दीयों का इस्तेमाल करें जिससे लोकल को वोकल करने का अवसर मिलेगा तथा गांव के कुम्हारों का छिनता रोजगार पुन: प्राप्त होगा साथ ही प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी.
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दिवाली में
राष्ट्र हित का गला घोंट कर, छेद न करना थाली में,मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दिवाली में.देश के धन को देश में रखना, नहीं बहाना नाली में,मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दिवाली में.बने जोे अपनी मिट्टी से, वो दीये बिके बाजारों में,
छिपी है वैज्ञानिकता, अपने सभी तीज-त्योहारों में.चायनीज झालर से आकर्षित, कीट-पतंगे आते हैं,जबकि दीये में जलकर, बरसाती कीड़े मर जाते हैं.
कार्तिक और अमावस वाली रात, न सबकी काली हो,दीये बनाने वालों की, अब खुशियों भरी दिवाली हो.रणजीत कुमारहिन्दी शिक्षक सह प्रमंडल उपाध्यक्ष, बीएसटीए, दरभंगा
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