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मासिक धर्म स्वच्छता अभी भी लड़कियों के स्कूल जाने में बाधा

जिले के सरकारी स्कूल में छात्राओं के लिए सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन होना जरूरी है, लेकिन स्कूलों में ही इसका अमल नहीं हो रहा है.

समस्तीपुर . जिले के सरकारी स्कूल में छात्राओं के लिए सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन होना जरूरी है, लेकिन स्कूलों में ही इसका अमल नहीं हो रहा है. प्रभात खबर ने शहर के स्कूल की पड़ताल की तो हकीकत सामने आई. स्कूलों में कहीं-कहीं वेंडिंग मशीन तो है, लेकिन इनमें पैड नहीं है. छात्राओं की सुरक्षा से जुड़ी ही बड़ी व्यवस्था पर प्रबंधन ध्यान नहीं दे पा रहे हैं.

छात्राओं का कहना है कि मशीन में कई महीनों से ही पैड की रिफलिंग नहीं हो रही है और कही कही मशीन खराब पड़ी हुई है. जिले के विभिन्न सरकारी विद्यालय के 23 फीसदी नामांकित छात्राएं मुश्किल दिनों की परेशानी को देखते हुए विद्यालय नहीं आती है. बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रमण्डल उपाध्यक्ष रणजीत कुमार कहते है कि बिहार भारत का पहला राज्य था जिसने मासिक धर्म अवकाश की शुरुआत की, जो 1990 के दशक में एक क्रांतिकारी कदम था. लेकिन जब मासिक धर्म स्वच्छता की बात आती है, तो राज्य एक प्रभावी कार्यक्रम की सुविधा देने में पिछड़ गया है.

सभी मिडिल, हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें लगाने के हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राज्य सरकार ने इसे प्राथमिकता नहीं दी है. बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की एक छात्रा ने बताया कि मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना भी चलाई जा रही है, जिसके तहत कक्षा 7 से 12 तक पढ़ने वाली लड़कियों के बैंक खाते में सैनिटरी नैपकिन खरीदने के लिए सालाना 300 रुपये जमा किए जाते हैं. लेकिन हमें यह नियमित रूप से नहीं मिलता. वैसे भी, यह राशि पूरे साल अच्छी गुणवत्ता वाले सैनिटरी नैपकिन खरीदने के लिए बहुत कम है.

अधिकांश स्कूलों में किशोरी मंच व मीना मंच का सही ढंग से नहीं हो रहा संचालन

बालिकाओं की उपस्थिति उच्च विद्यालयों में बढ़ाने व उन्हें सामाजिक बदलाव के लिए प्रोत्साहित करने के लिए जिले के सभी मध्य विद्यालय में मीना मंच व माध्यमिक विद्यालयों में किशोरी मंच का गठन कमोबेश कुछ को छोड़ अधिकांश विद्यालयों में तो किया गया है, लेकिन यह अपने उद्देश्यों से भटक गया है. किशोरी मंच के तहत संचालित कार्यक्रमों का कार्यान्वयन अधिकांश स्कूलों में नहीं हो रहा है. कई स्कूलों में तो यह केवल कागजों और फाइलों में सिमट कर रह गया है. किशोरी मंच के गतिविधियों की योजना बनाने व उस पर चर्चा के लिए उच्च विद्यालय में एक कक्ष उपलब्ध कराने की प्रक्रिया भी अभी तक सभी स्कूलों में पूरा नहीं की गई है. इस निर्धारित कक्ष का उपयोग किशोरी मंच की बैठक के लिए किया जाता है. कक्ष उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक की रहती है, लेकिन इसके प्रति अधिकांश स्कूलों के एचएम लापरवाही बरत रहे हैं. ऐसे में उक्त महत्वपूर्ण सार्थक कार्यक्रम अनुपयोगी बनता जा रहा है.

स्कूलों में अनुपस्थिति और ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए अच्छी सोच जरूरी

अल्फा बी. एलौथ की शिक्षिका विमला कुमारी ने बताया कि स्कूलों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें शुरू करना इन वर्जनाओं को चुनौती देने और मासिक धर्म के बारे में खुली बातचीत को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. शैक्षणिक संस्थानों में इन आवश्यक उत्पादों को आसानी से उपलब्ध कराकर, हम मासिक धर्म के बारे में बातचीत को सामान्य बनाना शुरू कर सकते हैं. सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन छात्रों को स्कूल परिसर में सैनिटरी नैपकिन का एक विवेकपूर्ण और विश्वसनीय स्रोत प्रदान करके इस कमी को पूरा कर सकती है. यह सुविधा लड़कियों को स्कूल में रहते हुए अपने मासिक धर्म को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में सक्षम बनाती है, जिससे उनका आत्मविश्वास और उपस्थिति बढ़ती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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