भारत के महान सपूत थे सामाजिक न्याय के मसीहा जननायक : उप राष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की 101वीं जयंती पर उनके पैतृक गांव कर्पूरीग्राम पहुंचे.
समस्तीपुर : उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की 101वीं जयंती पर उनके पैतृक गांव कर्पूरीग्राम पहुंचे. उनके साथ उनकी धर्मपत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ भी थी. वे उनके पैतृक निवास जिसे सरकार ने स्मृति भवन बना दिया है, वहां जाकर माल्यार्पण किया. त्रिमूर्ति भवन में जाकर उनकी आदम प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. उसके बाद उन्होंने कॉलेज परिसर में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूंगा. कर्पूरी ठाकुर के निवास स्थान जाकर जब मैंने उनकाे श्रद्धा सुमन अर्पित की, नमन किये तो मेरे मन में एक भावना आयी. राष्ट्र को समर्पित करने की. राष्ट्र ही सर्वोपरि है. जननायक का जीवन हमारे लिए प्रेरणादायक है, यह गांव उनकी जन्म भूमि है और कर्म भूमि पूरा भारत राष्ट्र है. संसार से विदा होने के 36 वर्ष बाद देश के महान सपूत को देश की सबसे बड़ी उपाधि भारत रत्न दिया गया. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से अलंकृत किया गया, तो पूरे भारत में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में खुशी की लहर दौड़ गयी. मैंने राज्यसभा में ये दृश्य देखा है, जब ये घोषणा की गयी कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से नवाजा जा रहा है, तो मेरे मन में यह विचार आया कि यह पहले क्यों नहीं हुआ. अब बदलाव आया गया है, उनको जीवित किया जा रहा जो हमारे आदर्श हैं. और उनको सही सम्मान दिया जा रहा है. भारत के ये महान सपूत सामाजिक न्याय के मसीहा हैं.
– जननायक ने बड़ी आबादी के लिए संभावनाओं का द्वार खोला
मैं कर्पूरीग्राम की माटी पानी को नमन करता हूं, जिसने इस महान सपूत का सृजन किया है. आज भी हम देख रहे हैं, उनकी भावना का आदर करते हुए उनके आदर्श पथ पर चलकर नीतीश कुमार और शिवराज सिंह चौहान उनके सपनों को साकार कर रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर ने देश में सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने का काम किया है. चुनौती पूर्ण वातावरण में उन्होंने अपने कॉलेज की शिक्षा पूरी की. बड़ा चुनौतीपूण वातावरण था. अपने जीवन में अपने लिए कोई संपत्ति नहीं बनायी, पूरा जीवन जनता के लिए समर्पित रहा. वे विधानसभा चुनाव कहीं नहीं हारे. उनको कीर्तिमान प्राप्त है,बिहार जैसे राज्य में पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का. वे एक बार बिहार के उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे. संक्षिप्त काल में उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक काल का नया इतिहास लिखा. सदियों की जड़ता को तोड़ दी. उन्होंने अपना जीवन उसके लिए समर्पित किया जो समाज के हासिये पर थे. उन्होंने बड़ी आबादी के लिए संभावनाओं का द्वार खोल दिया. उन्होंने समता युग की नयी शुरुआत की. उन्होंने अपना जीवन उनके लिए समर्पित किया जो समाज के हासिये पर थे. जिन पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था. केंद्र और राज्य सरकार उनकी नीतियों और सपनों को साकार कर रही है. याद कीजिये, वो जमाना कितना चुनौतीपूर्ण था. 1978 में सत्ता में आने के बाद अपने सामाजिक न्याय के सोच तहत उन्होंने आरक्षण लागू किया. किसी विरोध की परवाह नहीं की. उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. सरकारी दफ्तर में हिन्दी में काम काज को बढ़ावा दिया. वे बहुत दूरदर्शी थे, वर्तमान की भी सोचते थे और भविष्य की भी सोचते थे. वे पहले मुख्यमंत्री थे, देश में जिन्होंने शिक्षा पर ध्यान दिया. वे पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई मुफ्त की. यह बहुत महत्वपूर्ण घोषणा थी. शिक्षा ही वह शक्तिशाली उपकरण है, जो समाज को बदल सकता है. सामाजिक समानता ला सकता है, समाज की विषमता को खत्म कर सकता है. जब वे मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने देखा कि सचिवालय में जो लिफ्ट है, उसका उपयोग चतुर्थवर्गीय कर्मचारी नहीं कर सकते हैं. उन्होंने इस नियम को तोड़ा और सभी स्तर के कर्मियों के लिए लिफ्ट के उपयोग का आदेश जारी किया. अंतरजातीय विवाह की जब भी उन्हें सूचना मिलती, तो उस शादी में जरूर शरीक होते थे. वे सामाजिक समानता चाहते थे. वे चाहते थे कि समाज में ऐसी व्यवस्था हो, जो हमारी एकता को प्रदर्शित करे. आदर्श नेतृत्व का उदाहरण जानने के लिए कर्पूरी ठाकुर के जीवन को देखने की जरूरत है. उन्होंने कभी अपने लिए संपत्ति नहीं बनायी. उनका त्याग, उनका समर्पण अनुकरणीय है. उन्होंने कभी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया. वे जाति, धर्म व वर्ग से ऊपर उठकर समानता को देखते हुए विकास संपन्न करते थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है