पूसा : डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पादप रोग विभागाध्यक्ष सह अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ एसके सिंह ने कहा कि केला के पौधों में नमक की मात्रा की अधिकता से कई प्रकार के दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं. जिसे रोकने की जरूरत है. उन्होंने लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि नमक की अधिकता के कारण केले की पौधे की पत्तियां किनारों पर झुलसा हुआ दिखाई देता है. उन्होंने केला उत्पादक किसानों से कहा कि नमक की अधिकता से होने वाले रोग से बचाव के लिए ह्यूमिक एसिड, बीसीए, जिप्सम एवं विघटित जैविक उर्वरक के साथ पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद का उपयोग कर रोका जा सकता है. डॉ सिंह ने कहा कि जिप्सम मिट्टी की संरचना में सुधार करता है. साथ ही, दीर्घकालीन उत्पाद को बनाये रखने के लिए किसानों को मिट्टी का समुचित प्रबंधन करने की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि जिप्सम का प्रयोग सिंचाई की गई पानी में घोलकर व पौधारोपण से पहले व रोपण के ठीक बाद मिट्टी के ऊपरी सतह में करने से लाभदायक होता है. प्रधान अन्वेषक ने कहा कि जिप्सम के प्रयोग से फास्फोरस के क्षयन को रोकने में मदद मिलती है. नमक की अधिकता से होने वाले रोगों से बचाव कर किसान केला के उत्पादन क्षमता व गुणवत्तापूर्ण कर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं.
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