जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में आईसीयू की सुविधा नहीं है. और न ही इसको लेकर किसी तरह का प्रशासनिक पहल ही किया जा रहा है. प्रशासनिक अनदेखी का नतीजा यह है कि निजी अस्पतालों में आईसीयू एवं पीआईसीयू सुविधा के नाम पर मरीज ठगे जा रहे हैं. अधिकतर अस्पतालों के एक कमरे में पर्दा लगाकर एसी, मॉनीटर, ऑक्सीजन पाइपलाइन एवं कुछ बेड दिखाकर मरीजों का दोहन किया जा रहा है.
आइसीयू और पीआईसीयू के नाम पर 3 हजार से 8 हजार रुपये प्रतिदिन वसूली की जाती है. उपर से प्रतिदिन दवाई, जांच, डॉक्टर का विजिट का खर्चा अलग से. जबकि न तो उन आइसीयू में विशेषज्ञ चिकित्सक मौजूद होते हैं और न ही वेल ट्रेंड कर्मी. मरीजों का वहां भगवान भरोसे ही इलाज होता है.
आपात स्थिति में जब मरीजों की स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है तो उन्हें पीएमसीएच एवं अन्य बड़े अस्पतालों में रेफर करके अपनी जान छुड़ा लेते हैं. जानकारों की मानें तो शहर के मोहनपुर रोड में स्थित कमला इमरजेंसी हॉस्पिटल सहित अपवाद स्वरूप कुछेक गिने चुने अस्पताल में ही डिग्रीधारी गंभीर और गहन चिकित्सा विशेषज्ञ चिकित्सक एवं ट्रेंड आईसीयू कर्मी मौजूद हैं जो आईसीयू में गंभीर मरीजों का इलाज करने में सक्षम हैं.
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सरकारी व्यवस्था का हाल यह है कि सदर अस्पताल में 11 वर्ष पूर्व आईसीयू भवन तो बना दिया गया, लेकिन आज तक उसे चालू नहीं किया जा सका. इस आईसीयू को करीब 40 लाख से अधिक मूल्य के उपकरणों से सुसज्जित किया गया था. जिसमें 4 वेंटिलेटर भी शामिल थे. लेकिन काफी वर्षों तक उपयोग में नहीं आने पर वर्ष 2019 में 3 वेंटिलेटर को पीएमसीएच भेज दिया गया. भवन के आधे हिस्से को डायलिसिस यूनिट को दे दिया गया है. अब तो भवन भी पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है.
गहन देखभाल इकाई ( आईसीयू ) का तात्पर्य उन रोगियों को दिये गये विशेष उपचार से है जो गंभीर रूप से अस्वस्थ होते हैं और उन्हें 24 घंटे कड़ी देखभाल की आवश्यकता होती है. एक गहन देखभाल इकाई यानी आईसीयू, अत्यधिक बीमार और गंभीर रूप से घायल मरीजों को महत्वपूर्ण देखभाल और जीवन सहायता प्रदान करती है. जहां उनका विशेषज्ञों की एक उच्च प्रशिक्षण प्राप्त टीम द्वारा 24 घंटे निरंतर अवलोकन और विशेष देखभाल किया जाता है.
वेंटिलेटर : एक वेंटिलेटर का उपयोग तब किया जाता है जब रोगी इतने कमजोर या बीमार होते हैं कि खुद सांस भी नहीं ले सकते हैं. तब उन्हें वेंटिलेटर की मदद से सांस दी जाती है.
हार्ट मॉनीटर : एक हार्ट मॉनीटर स्क्रीन पर चलने वाली रंगीन रेखाओं के साथ एक टेलीविजन की तरह दिखता है. ये रेखाएं रोगी के दिल की गतिविधि को मापती हैं.
फीडिंग ट्यूब्स : अगर कोई मरीज सामान्य रूप से खाने में असमर्थ होता है तो उसके नाक में, पेट में बने छोटे से कट के माध्यम से या एक नस में फीडिंग ट्यूब के जरिये भोजन दिया जाता है.
ड्रैंस और कैथेटर : ड्रैंस शरीर से रक्त या तरल पदार्थ के किसी भी निर्माण को हटाने के लिए उपयोग की जाने वाली ट्यूब होती है. कैथेटर मूत्र को निकालने के लिए मूत्राशय में डाली गई पतली ट्यूब होती है.
शहर के कमला इमरजेंसी हॉस्पिटल के एमडी सह गंभीर और गहन चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. राजेश कुमार झा बताते हैं कि आईसीयू का अर्थ अस्पतालों के एक कमरे में पर्दा लगाकर एसी लगा देना, मॉनिटर लगा देना, ऑक्सीजन पाइपलाइन एवं बेड लगा देना नहीं होता है. बल्कि आईसीयू में उन सभी मशीनों को चलाने में दक्ष तथा गम्भीर मरीजों के इलाज में कुशल एवं विशेषज्ञ चिकित्सक की 24 घण्टे उपलब्धता तथा उसके नेतृत्व में देखरेख करने वाली एक कुशल टीम का होना भी अति आवश्यक है. अतः मरीज के परिजनों को किसी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराने से पहले उस आईसीयू के विशेषज्ञ चिकित्सक ( जो एमबीबीएस के उपरांत एनेस्थेसिया एवं क्रिटिकल केअर में एमडी होते हैं) उनकी एवं उनकी उपलब्धता की पूरी जानकारी का पता कर लेना चाहिए.
Posted By: Thakur Shaktilochan